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10 Dec 2017 · 1 min read

सब रोटी का खेल

रोना-हँसना यहाँ जगत में सब रोटी का खेल
●●●
रोटी की ही खोज में, छूट गया है देश
मातृभूमि की याद है, भाए ना परदेश
भाए ना परदेश, गांव की मिट्टी भाती
वाहन का ये शोर, वहां कोयल है गाती
आकर देश पराये लगता पहुंच गए हैं जेल-
रोना-हँसना यहाँ जगत में सब रोटी का खेल
●●●
बच्चे गाते गीत हैं, दबा दबा कर पेट
तब होता जाकर कहीं, अन्न देव से भेट
अन्न देव से भेट, नहीं अक्षर से लेकिन
कैसी दुनिया हाय, दिखाती कैसे ये दिन
रोटी है तो बचपन वरना यह भी एक झमेल-
रोना-हँसना यहाँ जगत में सब रोटी का खेल
●●●
अपनों की खातिर सदा, करता था संधर्ष
खुशियाँ घर में बाँटकर, मिलता उसको हर्ष
मिलता उसको हर्ष, हुई जबसे बीमारी
घर वालों पे आज, वही मानव है भारी
पलकों पर था लेकिन अब तो देंगे उसे धकेल-
रोना-हँसना यहाँ जगत में सब रोटी का खेल

– आकाश महेशपुरी
●○●○●○●○●○●○●○●○●○●○●

नोट- यह रचना मेरी प्रथम प्रकाशित पुस्तक “सब रोटी का खेल” जो मेरी किशोरावस्था में लिखी गयी रचनाओं का हूबहू संकलन है, से ली गयी है। यहाँ यह रचना मेरे द्वारा शिल्पगत त्रुटियों में यथासम्भव सुधार करने के उपरांत प्रस्तुत की जा रही है।

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 883 Views
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