सब कोस रहे निज भागन को
बदरा घिरते उड़ते नभ में धरनी पर छाई’ मुसीबत है।
हिम के टुकड़े गिरते-फिरते लगते तन पै मन खीजत है।
बरसै पुरजोर हिया धड़कै श्रम की अब होत फ़ज़ीहत है।
सब कोस रहे निज भागन को फसलें जब खेतन भींजत है।
बदरा घिरते उड़ते नभ में धरनी पर छाई’ मुसीबत है।
हिम के टुकड़े गिरते-फिरते लगते तन पै मन खीजत है।
बरसै पुरजोर हिया धड़कै श्रम की अब होत फ़ज़ीहत है।
सब कोस रहे निज भागन को फसलें जब खेतन भींजत है।