सब कुछ कह लेने के बाद भी कुछ बातें दफ़्न रह जाती हैं, सीने क
सब कुछ कह लेने के बाद भी कुछ बातें दफ़्न रह जाती हैं, सीने के अंधेरे में। अकेलेपन की आदत भीड़ का हिस्सा होने नहीं देती। दुनिया चलती रहती है, तुम रूके हो।
तुमसे कभी किसी ने कहा नहीं कि क्या ग़लत है और क्या सही। और सीखने की होड़ में जब तुम ग़लत हुए तो सबने तुमपर ऊँगलियाँ उठायीं। तुम जब नौंवी क्लास में बहुत अकेले हो गये थे, तब किसी ने तुम्हारे कांधे पर हाथ रखकर नहीं कहा था, “सब ठीक होगा।”
तुम्हारे आस-पास भी भीड़ थी। एक उम्र के मोड़ पर सबने तुम्हे अपनाया, तुम्हे वो जगह दी, जिसके हक़दार थे तुम। फिर अगले कुछ मोड़ पर सबने तुम्हे छोड़ दिया। एक-एक करके गये सब, वो भी जो तुम्हारे जाने की बात पर रो पड़ते थे।
तुम अब सब जानते हो। हार-जीत, उदासी, ग़म, वादा-कसमें, हँसी, तन्हाई… सब कुछ। तुमसे अब कोई कुछ नहीं कहता। कभी जो तुमसे वो लोग मिलते हैं जो तुम्हे छोड़ गये थे और तुम्हे यकीं दिलाना चाहते हैं कि वो अब भी तुम्हारे साथ हैं तो तुम हँस पड़ते हो।
उदासियों की रात अब फिर से तुम अकेले अमावस के आसमान में सितारे तकते हुए, खुद से बातें करते हो। क्योंकि तुम समझ चुके हो बहुत पहले ही कि सफ़र में तुम्हारे साथ सिर्फ तुम हो। काफ़िले झूठे हैं। तुम गुनगुनाते हो, कोई धीमी ग़ज़ल और रात के साथ सुबह का इंतजार करते हो
तुमने सीख लिया है, कि जीने का कोई तरीका नहीं होता। तुम जानते हो, अकेलापन बेहतर है, बेवजह की भीड़ से। तुम मुस्कुराकर आगे बढ़ जाते हो, भावुक बातों पर। क्योंकि तुम किसी से नहीं कह सकते कि तुम्हारी भावनायें अब निष्ठुरता में बदल चुकी हैं और तुम अब बेफिक्र हो, खुश हो अकेलेपन में… जैसे अकेला चाँद आसमान मे