‘ सब ऊपर वाले की दया है ‘
संस्मरण
ये घटना मेरी दीदी के घर आजमगढ़ की सन् 1990 की है दिसंबर का महीना टॉंस नदी के किनारे दीदी का घर…सूरज अस्त होने वाला था मैने देखा गेट पर दो लड़कियाँ खड़ी हैं उनकी उम्र तेरह – चौदह साल के आस – पास की होगी , मैने सोचा हमेशा की तरह दीदी का घर और लॉन देखने के लिए सबकी तरह ये भी रूक गईं होंगीं लेकिन कुछ देर बाद देखा तो दोनों गेट पकड़े वहीं खड़ी हैं । अंदर जा कर दीदी को बताया तो दीदी बाहर आई और उन लड़कियों से पूछा की क्या काम है ? वो बोलीं की बस वाले ने यहीं उतार दिया और चला गया दीदी को उनकी बात अजीब तो लगी इधर रात होने को आ रही थी और ये ठहरी छोटी लड़कियाँ , दीदी उनको अंदर ले आई खाना खिलाया और गेस्ट रूम में सुला दिया ।
सुबह नाश्ता करने के बाद दीदी ने कहा की इन लड़कियों का क्या किया जाये ये तो कुछ और बता ही नही रही हैं कहाँ से आई हैं तभी मेरे मन में उनके चेहरे देख कर ( चेहरे पर कोई परेशानी के चिन्ह नही थे ) एक बात जागी की इनसे मैं पूछताछ करती हूँ मैने दीदी से कहा की मैं कमरे में इनसे बात करती हूँ मैने कमरा बंद किया और शुरू हो गई भोजपुरी में लेकिन बित्ते भर की लड़कियाँ बड़ी घाघ निकलीं कुछ और बोलने को तैयार ही नही लेकिन मैं भी ठहरी मैं अपनी जासूसी दिमाग चलाया कमरे में दीदी की डावरमैन कुतीया थी ‘ टेसी ‘ ( जीजा जी के द्वारा ट्रेंड की हुई बेहद समझदार ) उसको अंदर कमरे में लेकर आई टेसी को देख कर लड़कियों के चेहरे की रगंत बदली मैने फिर पूछना शुरू किया बीच – बीच में ‘ टेसी शू…’ बोलती टेसी जैसे ही आगे बढ़ती मैं टेसी को मना कर देती वो रूक जाती अच्छा खासा फिल्मी सीन था ( आज भी सोच कर खूब हँसती हूँ ) टेसी का कमाल लड़कियों ने सब उगल दिया….दीदी को बुला कर बताया मेरी बातें सुन कर दीदी आवाक् उसने तुरंत DIG को फोन मिलाया सारी बातें बताई और एक खास हिदायत दी की लड़कियों को उनके घर छोड़ने के लिए अपने वफादार सिपाहियों को ही भेजियेगा और जल्दी जिससे लड़कियाँँ दिन ही दिन में घर पहुँच सकें ।
DIG से जान पहचान थी उस वक्त दीदी Politics में थी वो काम आया DIG ने वही किया जो दीदी ने कहा , सिपाहियों ने लड़कियों को घर पहुँचा कर फोन पर दीदी की उनके माँ – बाप से बात कराई…सबने चैन की साँस ली एक बहुत बड़ा बोझ सीने से उतर गया था ।
लड़कियाँ गोरखपुर में किसी गाँव के पंडितों के घर की थीं एक लड़के के साथ थोड़े पैसे लेकर लड़के के साथ घर छोड़ आईं थीं आजमगढ़ में घुसते ही लड़का ये बोल कर उतरा की कुछ खाने को लेकर आता हूँ लेकिन आया नही पूरे पैसे लड़कियों से पहले ही ले लिए थे । आखिरी बस स्टॉप दीदी के घर के सामने था कंडक्टर ने लड़कियों को वहीं उतार दिया था…सब कुछ खराब होते हुये भी भगवान लड़कियों को बचा रहा था पहला लड़के का पैसे लेकर उतर जाना दूसरा कंडक्टर का दीदी के घर के सामने उतारना तीसरा किसी और के घर के गेट पर ना जाकर दीदी के गेट पर आना चौथा मुझे टेसी का ईस्तमाल करने की सोचना…. नही तो उन लड़कियों के साथ क्या होता ये सोच कर भी रूह आज भी काँप जाती है । जीवन के ये अनुभव जीवन भर याद रहते हैं और कभी – कभी रातों की नींद उजाड़ देते हैं ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 17/11/2020 )