सब्र
सब्र
“आखिर कब तक हम यूँ हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे जी ?” पत्नी ने पूछा।
“सब्र कर भाग्यवान, ऊपरवाले और सरकार पर विश्वास रख। सरकार हम सबको कोरना से बचाव के मद्देनजर ही लॉकडाऊन की अवधि बढ़ा रही है। स्थिति में सुधार होते ही हम लोग फिर से अपने-अपने काम पर लग जाएँगे।” पति ने उसे समझाते हुए कहा।
“अड़ोस-पड़ोस के लोग धीरे धीरे अपने गाँव लौट रहे हैं। हमीं लोग कब तक पड़े रहेंगे यहाँ ?” पत्नी भविष्य को लेकर आशंकित थी।
“अच्छा, ये बताओ हम अपने गाँव चले भी गए, तो क्या करेंगे वहाँ ? कौन-सा खजाना गाड़ रखा है वहाँ ? और क्या इतना आसान है गाँव पहुँचना ? ट्रेन, बस, ट्रक सबके पहिए थम गए हैं। यहाँ से 800 किलोमीटर दूर उड़कर भी तो नहीं जा सकते न ? और पैदल ? सोचना भी मत… आत्महत्या जैसे कदम उठाना होगा।” पति उसे वास्तविक स्थिति बताने की कोशिश कर रहा था।
पत्नी को चुप देखकर वह संयत भाषा में बोला, “देखो, यहाँ की सरकार जो भी बन पड़ रहा है कर रही है न हमारी सहायता। स्वयंसेवी संस्था वाले भी हमारी मदद करने आ रहे हैं। अभी तक तो मालिक भी हमें तनखा दे ही रहे हैं, क्योंकि उन्हें भी पता है कि स्थिति सामान्य होने पर हम मजदूर लोग ही उन्हें पहले की स्थिति में ला खड़े करेंगे। मैं ठेला में सब्जी-भाजी बेच कर भी दो पैसा कमा ही रहा हूँ। स्थिति सामान्य होते ही हम काम पर लौटेंगे और खूब मेहनत करके मालिक और सरकार के भरोसे पर खरे उतरेंगे। अभी तुम ज्यादा टेंशन मत लो। बच्चों की और अपनी सेहत का ध्यान रखो।” उसने प्यार से पत्नी के हथेली को पकड़ कर कहा।
“और आपकी सेहत का ख्याल कौन रखेगी जी ?” पत्नी को शरारत सूझी।
“मेरी चिंता मत कर पगली। तुम लोगों की अच्छी सेहत देखकर मैं अपने आप स्वस्थ हो जाऊँगा।” पति ने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़