सब्ज़ी महँगी है
सब्ज़ी महंगी है !
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सब्ज़ी ले लो,सब्ज़ी ।विजय प्रतिदिन एक ख़ास आवाज़ और अंदाज़ एक निश्चित समय पर आता और जो मौसमी सब्ज़ियां होतीं उनका कुछ धीमे और कुछ तेज़ आवाज़ में इस प्रकार से कहता कि जिसको जो सब्ज़ी पसंद होती उसे उसी सब्ज़ी की आवाज सुनाई देतीं ।उसकी आवाज़ की कशिश थी कि ताज़ी सब्ज़ियों की सुगंध ;कालोनी की सारी महिलायें जैसे उसकी प्रतीक्षारत होतीं और जिस गली में जाता वहीं चार पांच निकल आतीं और सब्ज़ी को देखती और फिर शुरू हो जाता मोल भाव का सबसे दिलचस्प दौर।
‘भैया,भिंडी कैसे दी है’ स्नेहा ने पूछा !
‘पंद्रह रुपये किलो’ विजय ने कहा।’अच्छा,’स्नेहा तुनक कर बोली,’वो राजू तो दस रुपये पाव दे रहा था।”तो ले लेती उससे।मैं तो इससे कम न दूंगा।’विजय ने कहा।”टमाटर कैसे दिये हैं?”कांता ने पूछा।’चालीस रुपये’ विजय ने कहा’ और कम नहीं होगे! लेना हो लो नहीं तो आपकी मर्ज़ी ।’
कोविड -19 के समय में सब्ज़ी वालों ने जम कर काटा।लोगों ने भी मजबूरी में दिया भी।परंतु कोविड के कमजोर होते ही लोग अपनी पुरानी आदतों पर
उतर आये।हर चीज महँगी की रट लगाने लगे।ऐसा काम न होने की वजह से भी हुआ जिनकी नौकरी थी वो तो किसी हद तक झटका सहन कर गये परंतु जो निजि क्षेत्र में थे या स्व-रोज़गार में थे वे थोड़ा दु:खी थे।
अब आप सब्ज़ी का उदाहरण ले लें ।भिंडी जब बीस रुपये पाव थी तब भी महँगी थी;पंद्रह रुपये पाव हुई तब भी ;इनको दस रुपये दो तो भी “ठीक लगा लो,भाई” वाला जुमला सुनने को मिलेगा।
टमाटर दस रुपये किलो बिक रहा था तो बेचारा सब्ज़ी वाला आवाज लगा कर गला बैठा कर चला जाता पर फिर भी शाम की प्रतीक्षा होती कि सस्ता मिल जायेगा।सौ रुपये हुआ तो महंगा हो गया तो अस्सी रुपये दे दो।इनको सौ रुपये किलो में भी महँगी लगती है। दस रुपये किलो में भी।धनिया मिर्ची साथ में फ़्री चाहिये।अब सब्ज़ी वाला कहाँ जाये बेचारा? दस रुपये में दो तीन रुपये बचते हैं तो इन्हें “सोना तोल रहा है,भइया!थोड़ा और डाल में”।सारा लाभ निकल जाता है।अब हमें तो बेचनी सब्ज़ी इन महिलाओं को ही है ।को महंगी भी सस्ती और सस्ती को और सस्ती देनी ही पड़ेगी।
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राजेश’ललित