सबसे बड़ी चुप।
चुप रहना एक समझदारी भी है।और चुप रहना, एक कायरता भी है।अलग अलग अवस्था ओ का उल्लेख करती है।आज समय की क्या मांग है।समय के साथ चलते रहना भी एक समझदारी है।पर? समय अत्याचारों एवं अनाचारों के दौर से गुजर रहा है।तब हम क्या समय के साथ बहते रहे। चुप रहना भी एक साधना भी है।कि कोई इन्सान मौन धारण करता है।कि उसको बाणी की सिद्धि हो जाते ।तब हम लम्बे समय तक चुप रहते हैं।तो वह साधना का रुप ले लेती है। लेकिन जब काम को अत्याचार के रूप में बदलते है ।तब हम उसका सही तरीके से विरोध नही कर सकते हैं।और चुप रह कर सहन करते रहते हैं।तब हमारा चुप रहना मानवता को चुनौती देता है।और चुनौती को , केवल वीर मनुष्य ही गम्भीरता से लेता है। वीर मनुष्य अत्याचार को बढ़ते हुए देखकर वह चुप नही रह सकता है ।वह उस अत्याचार का विरोध अपनी अंतिम सांस तक करता रहता है। यहीं वीरता की निशानी है।