सबसे कम
सबसे कम
तय
अपने एकांत की असीमित चाल लिये
निर्विघ्न निरपराध
उस एकाकार की खींची गई परिधि के साँचे में
गढ़ने की
खुद को मढ़ने की
और फिर एकदिन
खुद से ये कहने कि
सुनो तुमने जो दिया मुझे मेरे हिस्से का वक्त
रचा मैंने
हर संभव शब्द
साँसों के अक्षरों से जिंदगी के पन्ने पर
आखिर तय है न तुम्हारा वक्त
“वक्त”
©️दामिनी नारायण सिंह