‘ सबसे अनोखी मैं ‘
2020 के बारे में क्या कहूँ समझ नही आ रहा है लोगों के लिए बहुत अलग सा रहा पूरा साल लेकिन मेरे लिए बस थोड़ा सा अलग रहा । 3500 स्क्वायर फीट का घर रोज झाड़ू – पोछा – डस्टिंग ( सफाई की थोड़ी बिमारी है , पोछे में पति मदद कर देते थे ) खाना ( जितने देश का आता है सब ) बर्तन , कपड़े तह कर लगाना , बिस्तर ठीक करना और इन दिनों हर बाहर से आई हर एक वस्तु को सेनेटाईज़ करना , सब्जियों को भिगोना फिर चार से पाँच बार धोना – सुखाना और फ्रिज में रखना ( सबने किया होगा ) सब मैं अकेले करती , मुझमें एक खराब बात है की मैं किसी से अपने बच्चों से भी काम नही करा पाती मुझे लगता है की मैं बोलूँगीं वो जब तक करेगें तब तक तो उससे आधे टाईम मे मैं खुद ही करके रख दूँगीं । इन सब कामों के बीच इतना थक जाती की अपना सिरामिक नही कर पाई हाँ पसीना सुखाते – सुखाते लेखन का कार्य खूब किया जिससे रोज मन को एक संबल मिलता था । बाहर ना जाने का कोई दुख नही ( मार्च से तीन बार घर से बाहर निकली हूँ ) कोरोना के पहले जब हालात सामान्य थे तब भी बहुत कम बाहर निकलती थी , फुर्सत ही नही रहती थी भगवान भी लेने आते तो मैं उनको भी बोलती ‘ प्लीज भगवान जी थोड़ा रूक कर आइये अभी आपके साथ जाने की भी फुर्सत नही है ‘ । मुझे अस्थमा है डायबिटीज है आठ ऊँगलियाँ लॉक हो जाती हैं सुबह चाय का कप तक पकड़ने में दिक्कत होती है फिर धीरे – धीरे खुलती हैं और मैं देवी बन जाती हूँ फटाफट सब काम निपटा कर नहा धो पूजा – पाठ कर फिर चाय पीते हुये आराम करती हूँ । किसी को घर में घुसने नही दिया आज भी ‘ अतिथि देवो भव: ‘ का अर्थ भूली हुई हूँ इतने खतरनाक कोरोना से डर और सावधानी ही भली है , हाँ एक बात तो बताना भूल ही गई मार्च से आज तक मैने अपने बालों पर कैंची नही लगाई है 25 सालों बाद ऐसा हुआ ( शादी के समय कम वक्त के लिए थोड़े बाल बढ़ाये थे ) । इस पूूरे 2020 में मेरा मन संतुष्ट रहा लेखन में उपलब्धियां मिल रहीं थी बस उनके लिए दुख था और है जिनको पैदल अपने घर जाना पड़ा और जिन्होंने अपनों को खोया और आज भी खो रहे हैं । लेकिन कुछ लोगों को किसी बात का कोई फर्क नही पड़ा ना आज पड़ रहा है कोरोना उनके लिए मेहमान था जो आया और इनसे इजाजत लेकर अपने घर चला गया , ना ये मास्क पहनते हैं ना हाथ धोते हैं और जो लोग ऐसा करते हैं उन पर ये हँसते हैं । इस साल ने अपनों को छीना तो अपनों को अपनों के पास भी रखा प्रकृति को भी साँस लेने का मौका मिला जिसको देख हमको हमारी गल्तियों का एहसास और शर्मींदगी हुई । मेरी जिंदगी में ज्यादा उथल – पुथल नही हुई मेरे बच्चे मेरे पास थे जो दुनिया की सबसे बड़ी नेमत थी और रही काम की बात तो आज भी दस – बारह लोगों पर तो भारी हूँ ।
यूँ रश्क ना कर तू मेरी हिम्मत और मेहनत पर
इस 2020 के पहले से मैं ऐसी ही अनोखी थी ।
नोट : मेरे इस अनोखे पन को कृपया नज़र मत लगाईयेगा ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 30/12/2020 )