सबके सुख में अपना भी सुकून है
सबके सुख में अपना भी सुकून है
फिर भी लगता है हमसे क्या परी है
ये दुःख संसार में लाजिमी है ‘अमरो’
लगता है हर बार ये सितम आखिरी है
कहना आसान है कुछ भी जज्बात में
ये ऐसे है जैसे बिजली गिरी बरसात में
चलता है उम्र भर ख्वाबों का सिलसिला
लगा दूरियां खत्म हुई अब आखिरी सफर है
— अमरो