सबका वह शिकार है, सब उसके ही शिकार हैं…
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
ओम की तलाश में
प्रकाश चंहु ओर है
राज जो कर सके
भर सक यही प्रयोग है
बसपा तो छलावा है
छद्म प्रयोग और दिखावा है
निशाने पे अखिलेश हैं
भरपूर ताक़त लगाना है
साइत ओर संयोग का
सही समय की तलाश है
सूर्य, चक्र, चंद्र सब ठीक है
राहु बैठा है शनि पर
बुद्ध का इन्तेजार है
लाल-पीला सब हो रहे
उसके चेहरे पर सिर्फ़ मुस्कान है
ग़ज़ब की है चाल उसकी
अजब उसका अंदाज है
सबका वह शिकार है
सब उसके ही शिकार हैं…