सफ़र
सफ़र
एसी फर्स्ट क्लास डब्बे में जैसे ही साधना ने अपना पर्स सीट पर रखा , गाड़ी चल पड़ी , उसने नीचे खड़े युवक को हाथ हिला दिया ”
युवक चुपचाप जाती हुई गाड़ी को देखता रहा । साधना ने कुछ पल बाहर देखा , और फिर सामने बैठी हमउम्र महिला से कहा,
“ हेलो , मेरा नाम साधना है। ”
“ जी , “ दूसरी महिला ने आगे खिसकते हुए कहा , “ मेरा नाम निशि है। ”
साधना के चेहरे पर यकायक एक हल्की सी मुस्कराहट आ गई।
निशि ने उसे कोतुहल की दृष्टि से देखा और पूछा , “ क्या हुआ ? “
“ कुछ नहीं , मुझे अपने बचपन की सहेली याद आ गई। ”
निशि ने साधना को एक पल के लिए गौर से देखा और कहा , “ साधना बाबूराम। ”
“ हाँ !” साधना ने लगभग चिल्लाते हुए कहा , “ निशि रामगोपाल ?”
“ हाँ। ” निशि ने पूरा मुहं खोल उल्लासपूर्वक कहा।
फिर तो दोनों सहेलियां गले मिली और एक ही सीट पर आकर बैठ गई।
“ मैंने सपने में भी नहीं सोचा था , तुम मुझे इस तरह ट्रैन में मिल जाओगी। ” निशि ने कहा।
“ मुझे भी विश्वास नहीं हो रहा , कितना सुखद अनुभव है यह। ” साधना ने कहा।
“ और सुना , जिंदगी कैसी रही, हमारी बचपन की बाकी सहेलियां कहाँ हैं ; राज अमृतराय, सुनीता महादेव ? “
इसके बाद दोनों ही हस दी , “ देख अभी तक सबके पिताजी के नाम भी याद हैं ।“
निशि ने कहा , “ वही तो सबसे मजबूत यादें है। ”
फिर दोनों सहेलियां कौन आजकल किधर है , क्या करता है की बातें करती रहीं। उसमें अध्यापक , शहर की दुकानें , रामलीला, पड़ोसी, भिखारी , कुत्ते , सब की बातें आ गई।
“ सच्च, बहुत अच्छा लग रहा है , ऐसा लग रहा है बहुत दिनों बाद अपनी जमीन को छू रहीं हूँ, कुछ ऐसा जो मेरा है , वहां अमेरिका में अपने घर बैठ कर कई बार लगता रहा , जैसे भटक रही हूँ , और यहाँ चलती गाड़ी में तेरे साथ बैठ कर लग रहा है जैसे स्थिरिता फिर से मिल गई है , बीच के पच्चास साल कितनी तेजी से बीत गए। ” साधना ने अपने सीने पर हाथ रख मुस्कराते हुए कहा।
कुछ पल दोनों शांत रही , फिर निशि ने बातचीत की बागडोर अपने हाथ में लेते हुए कहा , “ तो तू शादी के बाद अमेरिका रही ?”
“ अरे नहीं , पहले मुंबई में थी, फिर वहां से मेरे हस्बैंड को वर्ल्ड बैंक में नौकरी मिल गई , फिर हम भटकते रहे दुनिया भर , कभी अफ्रीका , तो कभी ऑस्ट्रेलिया , अब पिछले सात सालों से अमेरिका में हैं , वाशिंगटन डी सी ।”
“ अच्छा अब तूं बता , क्या किया जिंदगी भर।?”
“ कुछ खास नहीं , उसी छोटे शहर में रहे जिंदगी भर , मेरे हस्बैंड का अपना बिज़नेस है, मैं रिटायर्ड प्रिंसिपल हूँ। एक बेटा है , एक बेटी है , बेटा हैदराबाद में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, अभी बेटा हुआ है उसका , वहीँ से आ रही हूँ , बेटी कैलिफ़ोर्निया में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है , तलाक हो चुका है , फिर से लड़के की तलाश है , कुछ अच्छा नहीं लगता, जिंदगी भर मेहनत और ईमानदारी से जिए , फिर भी जिंदगी ऐसे मोड़ पर आ गई। “ थोड़ी देर रुककर निशि ने फिर कहा , “ और तुम्हारे बच्चे ? “
“ बेटा और बेटी । बेटे की पत्नी की कुछ समय हुआ एक्सीडेंट में मौत हो गई , वह अभी उससे उभरा नहीं है , बेटी लिविंग इन में है , एक अमेरिकन के साथ। ”
“ तो तुम्हे बहुत फ़िक्र होगी उसकी। ”
“ पहले थी , अब छोड़ दी है , बदलते वक्त को हम बांध नहीं सकते , और जो उसके साथ बहना चाहते हैं , हम उन्हें रोक नहीं सकते। बेटे की शादी पूरे रीतिरिवाज से एक भारतीय लड़की से की थी , क्या हुआ , हम जिंदगी भर भटकते रहे कि अच्छे से सेटल हो सकें, पर कभी पैर कहीं टिके ही नहीं , और यदि टिक भी जाते तो क्या हो जाता , टूट तो यहां भी रहा है। ”
थोड़ी देर दोनों चुप अपने ख्यालों में बैठी रही , मानो जिंदगी का हिसाब लगा रही हों , फिर निशि ने अपने मोबाइल से फोटो निकालते हुआ कहा , “ यह देखो मेरी बेटी ,आभा। ”
“ वाह, बहुत प्यारी है। साधना ने मुस्कराते हुए कहा।
“ इसे अपने बेटे से मिला दो , तुझे तो मैं अपनी बेटी आंख बंद करके दे सकती हूँ। अब तुझसे नजदीक मुझे कौन मिलेगा ?”
“ जरूर। ” साधना ने कहा , “ मैं अपने बेटे से बात करूंगी। ”
रात हो गई थी , दोनों अपनी अपनी जगह पर सोने चली गई। साधना सोच रही थी , बचपन की यह मित्रता आज भी कितनी तरोताजा है, जैसे हमारे मन अभी भी बच्चे हों।
निशि सोच रही थी , साधना तो मेरी अपनी है , अगर दोनों बच्चे मान जाएँ तो हम सब सुखी हो जाएँ।
—— शशि महाजन
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