सफ़र अभी लंबा है…
सफ़र अभी लंबा है…
थोड़ा सब्र और करो,
कर्म पे गर भरोसा है…
तुम निज कर्म करो,
मंजिलें खुद चलकर…
दरवाजा तेरा खटखटाएगी,
तुम दूर भी जाना चाहो…
पर पास वो तेरे आएगी।
…. अजित कर्ण ✍️
सफ़र अभी लंबा है…
थोड़ा सब्र और करो,
कर्म पे गर भरोसा है…
तुम निज कर्म करो,
मंजिलें खुद चलकर…
दरवाजा तेरा खटखटाएगी,
तुम दूर भी जाना चाहो…
पर पास वो तेरे आएगी।
…. अजित कर्ण ✍️