सफरनामा
सफरनामा
कल कोई मुझको याद करे,क्यों कोई मुझको याद करे।
मस्रूफ ज़माना मेरे लिए,क्यों वक्त अपना बर्बाद करे।।
पर दोस्तों, यह सफर जो हमने साथ तय किया,उन लम्हों को कैसे भुलाया जा सकता है?
वो हंसी, वो ठहाके, वो गहरी बातें,वो खामोशी में भी छुपी अनगिनत मुलाकातें।।
याद है वो शामें, जब चाय के कप में,सपनों की बातें होती थीं।
कभी ख्वाब बड़े लगते थे,तो कभी डर भी छोटा कर देते थे।।
हमारे झगड़े भी खास थे,कभी पलभर की नाराज़गी,
तो कभी घंटों की बहस।
पर अंत में मुस्कान ही थी,जो हर बात का हल थी।।
कितनी बार रास्ते भटके,पर साथ था तो मंज़िल आसान लगी।
कितनी बार मुश्किलें आईं,पर एक-दूसरे का कंधा हमेशा पास था।।
शायद कल वक्त की धारा हमें अलग बहा ले जाए,पर यह यादें, यह पल,हमेशा दिल के किसी कोने में बसे रहेंगे।
शायद तुम मुझे भूल जाओ,या मैं तुम्हें।
पर यह सफर, यह साथ,हमेशा अमिट रहेगा।।
तो दोस्तों, अगर कल कोई मुझको याद करे,तो सिर्फ इस सफर की वजह से करे।
मस्रूफ ज़माना भले ही मुझे भूल जाए,पर दोस्ती का यह सफर,
कभी भुलाया नहीं जा सकता।।
क्योंकि यह सफरनामा,सिर्फ लम्हों का नहीं,बल्कि दिलों का था।।