” सपन घड़े हैं ” !!
गीत
भेंट हाथ में ,
लिये खड़े हैं !!
दूर कहीं है ,
सधा निशाना !
भेद अभी है ,
हमने जाना !
ऐसे डूबे ,
खुद को भूले ,
या फिर है यह ,
ऐक बहाना !
फेरो नज़रें ,
प्रश्न बड़े हैं !!
रंग निराले ,
रोज़ यहाँ हैं !
आकर्षण है ,
बोध यहाँ है !
भीड़ भाड़ ना ,
रेलम पेला ,
नई नई नित ,
खोज यहाँ है !
हमने तुमने ,
सपन घड़े हैं !!
जब जग जाये ,
विश्वास अनूठा !
खिल जाये है ,
बूटा बूटा !
भेंट चढ़ा है ,
समय अगर तो ,
खुशियों को है ,
हमने लूटा !
मिले नज़र बस ,
यहीं अड़े हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )