सपनों की धुंधली यादें
देखी है बड़ी दूरियां, और दर्द सहा है कितना।
सुनकर तेरे दिल की आहें, रोया हूं मैं कितना।।
रब जाने कब आएंगे, बीते दिन वो फाकता।
लद जाएंगे तभी सवारी, फिर नापेंगे रास्ता।।
देखा था धुधंला एक सपना, होगा कब सरकार सा।
कुछ याद रही उनकी ऐसी,एक हंसता सा आकार था।
मुनमुन सी तू रुठी रही, हंस हंस के तुम्हें मनाते रहे।
मेरे दर्द की आहट सुनती रही, हम बीते राज भुलाते रहे।।
एक ताल चमन में छिप छिप कर, जो खेली आंख मिचोली थी।
कर बंटवारा, नन्हो का, आपस में रची रंगोली थी।।
चमन फरिश्ते ने खुश होकर, राज चमन का सौपा था।
हमें बिठाया सिहांसन पर, तुम्हारे राजमहल का सोफा था।
आगे पीछे हुकम हजूरी, भाटो के दरबार लगे।
तुम्हे थी दासी-बांदी सेवा, मिले सभी श्रृंगार सजे।।
काल चमन पर ऐसा छाया, वक्त मार टलती नहीं।
दुश्मन के हमलों में घिर गए, सेना भी कटती रही।।
लेकर अपनी जान को बंदे, एक कंदरा जाए छिपे।
तुम्हें छिपाया था सीने में, तेरे दामन में हम सिमटे।।
भूख प्यास की तड़प लगी जब, तुम्हें पुकारा चीख कर।
कहां गया वो चमन फरिश्ता, हमें गुफा में भेज कर।।
चिल्लाहट में आंखें खुल गई, पड़े हुए थे खटिया पर।
सपनों की धुंधली यादों को, तुम्हे लिखा इस पत्रिका पर।।