सपनों की दुनिया
तुम्हारे झूठ में भी
सच्चाई ढूंढ लेता हूं
आजकल सपनों में ही
अपने ढूंढ लेता हूं
क्या हुआ जो तू
नहीं मिलता अब मुझे
तेरे इंतज़ार में ही
सुकून ढूँढ लेता हूँ
वैसे तो है लोग बहुत
आस पास मेरे भी आजकल
लेकिन जैसे भी हो हालात
अब मैं किसी को बताता नहीं हूँ
मेरे ज़ख्मों में कोई
नमक न छिड़क पाए अब
इसलिए इनको मैं
किसी को दिखाता नहीं हूँ
दिल करता है मेरा भी
भरोसा करूँ मैं भी किसी पर
इसलिए उसके झूठ को
मैं सच मान लेता हूँ कभी कभी
चाहता हूँ कोई तोड़े न
मेरे इस नाज़ुक दिल को बार बार
इसलिए मैं उसे छोड़कर
सपनों में चला जाता हूँ कभी कभी
आकर देखो तुम भी
कभी इस मेरे सपनों की दुनिया में
है नहीं अपना कोई मगर
अपना होने का ढोंग भी
कोई करता नहीं सपनों की दुनिया में।