सपनों की दास्ताँ
एक समय की बात है। गाँव के एक छोटे से कोने में दीपक और कमला नाम के एक गरीब दम्पती रहते थे। वे उस गाँव में सबसे गरीब थे । उनके पास एक छोटी सी झोपड़ी थी जिसमें वे अपनी जिंदगी जी रहे थे । उनकी गरीबी का कारण दीपक का स्वास्थ ठीक न होना था। वैसे तो दीपक बहुत मेहनती था, परंतु फिलहाल में ही शहर जाने के क्रम में एक सड़क दुर्घटना से ग्रसित होकर वह चल फिर ही नहीं पा रहा था । दीपक शहर में काम करता था और जो कुछ कमाता, उससे अपना और अपनी पत्नी का निर्वाह करता था। चूंकि अब वह न तो बाहर जा पा रहा था और न ही कुछ कमा पा रहा था । इसलिए खाने को भी लाले पड़ रहे थे। अतः , उनकी गरीबी चरम पर थी।
उन्हीं दिनों दिन की शुरुआत की प्यारी सी चहल -पहल के साथ एक नन्ही सी परी पृथ्वी पर आई । अर्थात् कमला ने उस परिस्थिति में ही एक बहुत प्यारी सी परी सदृश बच्ची को जन्म दिया जिसका नाम उसने पिंकी रखा।
वे गरीब दंपती अपनी पहली संतान के रूप में पिंकी को पाकर बहुत खुश था। दोनों पिंकी का बहुत ध्यान रखते थे तथा उसे काफी प्यार करते थे। दोनों उसे प्यार से पालने लगे और दीपक का तबियत भी धीरे- धीरे सही होने लगा। दीपक को अपनी बेटी से बहुत सारी उम्मीदें थी । वह अपनी प्यारी सी पिंकी को पढ़ा लिखाकर एफ अच्छा अफसर बनाना चाहता था। दीपक स्वयं अपने परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण पढ़ नही पाया था जिसके कारण वह बहुत अफसोस महसूस करता था लेफिन वह किसी भी तरह अपनी पिंकी को पढ़ाना चाहता था।
समय बीतता गया । समय के साथ पिंकी बड़ी होती गई। वह जब छः वर्ष की हुई तो दीपक और कमला ने उसका नामांकन गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में कराया।वहाँ के शिक्षक काफी दयालू थे। उन्होंने पाया कि पिंकी बहुत ध्यान से पढ़ाई करती थी तथा पह बचपन से ही काफी कठिन परिश्रमी थी और पिता के इच्छानुसार पढ़ाई के प्रति पूर्णत: समर्पित थी |
कुछ समय और बीता । एक दिन उस गाँव में शहर से एक आई० ०ए० एस० ऑफिसर आई। उस गाँव में उसके लिए समारोह का आयोजन किया गया था। उस आयोजन में दीपक और कमला भी आने वाले थे। फिर अचानक से गाड़ियों की आवाजें गूंजी तथा उन सबके बीच से एक आइएएस ऑफिसर बाहर निकली। गाँव वालों ने उसकी स्वागत में अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ी। महिला अफसर ने गाँव वाले का धन्यवाद करते हुए कहा कि मैं भी इसी गाँव के मिट्टी से हूँ। मैंने आइएएस की तैयारी अपने मामा के घर शहर में रहकर किया है। मेरी प्राथमिक शिक्षा यहीं के प्राथमिक स्कूलों से हुई हैं । यहाँ से इंटर करने के बाद मैं शहर चली गई। वहाँ काफी संघर्ष करते हुए मैने अपने आगे की पढ़ाई जारी रखी । वहाँ से मैंने स्नातक किया तथा उसके बाद मैं इस पद कें लिए अपनी तैयारी में जुट गई।
आज जो मैं आपलोगों के बीच हूँ, उसकी कहानी बहुत पुरानी है। जब मैं केवल 7 वर्ष की थी तो मै अपने शिक्षक को एफ आइएएस के बारे में कहते हुए सुना था । मेरे उसी शिक्षक ने मुझसे कहा- बेटा तुझे भी इस मुकाम को हासिल करना है । तब से मैंने भी अपना मन इसी तरफ कर लिया। मेरे पिता भी इसके लिए मुझे काफी प्रोत्साहित करते रहे । तथा उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया। और तब से मेरे पिता का सपना मेरा सपना बन
गया। कुछ समय बादअपने सपनों को के लिए मैं शहर चली गयी । और मुझे आपसब को ये जाहिर करते हुए दिली खुशी हो रही है कि मैंने अपने मेहनत और संघर्ष के बल पर पहली ही बार में ये सफलता हासिल की है। इस पर तालियों की गूँजे उठने लगी | लोग आईएएस की तारीफे करते नहीं थक रहे थे। सभी को इस बात का इंतजार था कि वह अपने माता – पिता नाम बताएँ । सभी को इस बात की उत्सुकताथी कि वह धन्य माता -पिता कौन है?आखिरकार अपने सपनों की संघर्षपूर्ण कहानी सुनाने खत्म बाद उन्होंने अपनी बात खत्म करते हुए कहा कि
सपने वे नहीं होते, जो, हम नींद में देखते है।
बलिक सपने वे होते हैं, जो हमें नींद ही नहीं आने देते हैं।
इस पर एक बार फिर पूरा उत्सव समारोह तालियों से गूंज उठता है। सभी लोगों को आईएएस की संघर्षपूर्ण कहानी सुनकर आँसू आ जाते हैं तथा बच्चे इन्हें सुनकर काफी प्रोत्साहित होते है ।
तभी सम्मान कर्ता लोगों में कोई एक पूछता है कि आपके माँ – पापा कौन है ? आपने बताया कि वे इसी गाँव से हैं। इस पर वह मुस्कुराते हुए बोली कि मुझे इस को बताते हुए काफी खुशी हो रही है की मेरे माता- पिता दीपक और कमला है जो यहीं के हैं।इतने में दीपक और कमल भी उसी समय समारोह में पहुँचते हैं। वे पिंकी देखकर बहुत खुश है। पिंकी अपने माता-पिता को मंच पर बुलाकर उनका आशीर्वाद लेती है । दीपक और कमला की आँखें भर आती है। उन्हें अपनी पिंकी पर गर्व महसूस हो रहा था। आखिरकार पिंकी ने अपने पापा के सपनो को अपना सपना समझकर पूरा किया ।और आज सभी के लिए एक प्रेरणा बन चुकी थी।
प्रिय पाठक लोग।ये थी सपनो की दास्ताँ -पिंकी के सपनो की दास्ताँ।