सपनों का अश्व
कोई मानव को समझाए
काहे सुख ही पाना चाहे
क्यों सपनों का अश्व उड़ाए
जिसकी रास हाथ न आए !
जबसे देखा पहला सपना
आंखें भूल गई हैं थकना
पलकों के दुर्ग में बसा हुआ
इन्हें स्वर्ग का राज लगे अपना
आंख पागल खुद धोखा खाए
संग-संग मनवा को भरमाए
क्यों सपनों का अश्व उड़ाए,
जिसकी रास हाथ न आए !
सूखी सरिता तट खोकर के
कहती ये विधि का लेखा है
कोई अश्व पार न कर पाया
तृष्णा ऐसी जल-रेखा है
भ्रम की लहर हृदय छू जाए
प्यास बुझे पर तृप्ति न पाए
क्यों सपनों का अश्व उड़ाए,
जिसकी रास हाथ न आए !
आशा के पंख सजाए हुए
ये मोह का उड़ता घोड़ा है
अज अश्वमेध पूरा करने
माया ने इसको छोड़ा है
पार करने खुद गगन बनाए
गति कोई इसकी नाप न पाए
क्यों सपनों का अश्व उड़ाए,
जिसकी रास हाथ न आए !
सपनों का अश्व लगे सुंदर
दुनिया देखे आंखें भर-भर
पर सवार है वही जबर
जो रखे इसे काबू में कर
चाहना चपल हाथ न आए
पाश भी कोई बांध न पाए
क्यों सपनों का अश्व उड़ाए,
जिसकी रास हाथ न आए !