सपने थे आंखो में कई।
सपने थे आंखो में कई।
उमंग थी जीवन में इक नई।
ताईक्वांडो का था खिलाड़ी वो सही।
जीते थे मेडल उसने कई।
पुश्तैनी जमीनी विवाद में।
अधूरे संवाद ने।
ले ली जान एक मासूम की।
वो हाथ न कैसे कांपा।
कैसे ये पाप जगा।
नंगी तलवार से गर्दन उसकी कटी।
फुटबॉल की भांति गिरी।
छटपटाता रहा तन जब तक न मरी।
श्रद्धा सुमन है अर्पित उस लाल अनुराग को।
सरकार कहां पर सोई अपराधियो को फांसी दो।
फांसी दो फांसी दो दोषी को दोषी को।
RJ Anand Prajapati