सन्नाटा
सन्नाटा
नया है भारत, नई कांति है, चहुंदिश फैला उजियारा है
नवपथ निर्मित चल पड़ा देश, बह चली विकासी धारा है
‘कोई न भूखा’ कहता हाकिम, पूछे कहां गरीबी है ?
सड़कों पे कोटि-कोटि ठेले, गुमटी पर अलग कहानी है।
मंदिर, मस्जिद,स्टेशन देखो, भिक्षाटन की भीड़ खड़ी है
चहुंओर मचा है हाहाकार, नहीं कहीं कुछ सूझ रहा है
सीमा पर प्रहरी तो चौकस हैं, जवान हमारे महावीर हैं
दुश्मन बेहद डरा हुआ है, चाक-चौबंद सुरक्षा भी है।
लेकिन सरकारी दफ्तर देखो,तहसील कचहरी थाने देखो
शिक्षा, सेहत की ठेकेदारी, कुटिल कितनी मुस्कानें देखो
वही हैं थाने, वही कचहरी, क्या लगता क्या बदला है ?
जंह-तंह प्रकाश खुशी का फैला, चिराग तले अंधेरा है!
शोर विकास का कान फाड़ता
यकीनन जलसा अच्छा है ।
पर कोई तो अंधेरों से पूछे
भाई! इतना सन्नाटा क्यों है ?
*****************************************”””””””****””” राजेंद्र प्रसाद गुप्ता , मौलिक/स्वरचित।