‘सन्नाटा’
खामोशियाँ भी बोलती हैं,
पहले वो शब्द तोलती हैं।
सन्नाटा बहुत शोर करता है,
हर इंसान इससे डरता है।
कोई है,जो तैरता है,
तस्वीरों के रूप में।
परछाईं बन चलता है,
सुबह-शाम धूप में।
कुरेदता है देह भीतरी,
कुछ घाव दे जाता है।
कभी दर्द को मरहम बन
सहलाकर चला जाता है।
शांत मन में हलचल कर,
बेचैेन कर जाता है।
देख जिसे मौन भी
सिहर-सिहर सा जाता है….
⭐-gn✍