#सनातन_सत्य-
#सनातन_सत्य-
■ मानो या न मानो। मेरी बला से।।
【प्रणय प्रभात】
मित्र मात्र साथी ही नहीं, अग्रगामी, सहगामी व अनुगामी हो सकता है। प्रेरक, उत्प्रेरक, मार्गदर्शक व शिक्षक भी। प्रभु श्रीकृष्ण व अर्जुन की तरह।
शिक्षक कोई मित्र ही नहीं एक शत्रु भी हो सकता है। लक्ष्मण के लिए रावण की तरह। निरीह जीव व मूक प्रकृति से लेकर सर्वशक्तिमान ईश्वर तक। भगवान दत्तात्रय के अनुसार।
साथी एक सच्चा साथी सब कुछ हो सकता है अपने मित्र के लिए। विस्तृत जानकारी के लिए श्री रामचरित मानस के किष्किंधा कांड में वर्णित राम-सुग्रीव मैत्री प्रसंग की “कुपथ निवार सुपंथ चलावा” अर्द्धालियों का अध्ययन करें।
विन्यवत और विवेकशील हों तो। वैसे भी धर्मग्रन्थों का ज्ञान हम जैसे अल्पज्ञानी जिज्ञासुओं के लिए है। ऐंठ व अकड़ के मारे ज्ञान-गणपतियों और गोबर-गणेशों के लिए नहीं। उनका शिक्षक केवल समय ही हो सकता है।। हम तो बच्चों तक से सीख लेने व बूढ़ों तक को शिक्षा देने में भरोसा रखते हैं। बस इसीलिए हमारे मित्र एक-दो नहीं, तीनों पीढ़ियों में रहे हैं। बच्चे भी, बाप भी और बाप के बाप भी।
जय राम जी की।।
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-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़●
(मध्य-प्रदेश)