सनातन की रक्षा
हिंदुत्व के प्रचार में
क्या काम किसी ने है किया ।
वसुधैव कुटुंबकम् का
चीर हरण सबने है किया ।।
अबला नारी की पुकार
को अनसुना कराता है ।
सोचो ज़रा हिंदुत्व हमें
क्या यही सिखाता है ।।
धरने पर बैठी बेटी
की आंसू को ना पोंछ सके ।
मणिपुर को झुलसता छोड़
सनातन की रक्षा को चले ।।
धर्म जो ना निभाता वो
रक्षक खुदको कहलवाता है ।
सारे कर्म अधर्म कर
धर्म की आड़ ले जाता है ।।
कैसे भूलूं हिंदू बिटिया
की लाश जली थी रात में ।
राख में चेहरा ढूंढ रही थी
मां उसकी जज़्बात में ।।
गंगा मैली से भी बदतर
पहुंच गई हालात में ।
बड़े बड़े शहरों की पोल
खुल जाती बरसात में ।।
नहीं रहे वो महापुरुष
जो राम धुन में गाते हैं ।
अब तो ऐसे युगपुरुष
जो राम को ही लाते हैं ।।
जिस सनातन में मुहूर्त
के गोद में हर कार्य हुआ ।
उसी को दर किनारा कर
प्राण प्रतिष्ठा साकार हुआ ।।
अब भी जो इन्हें सनातन
का रक्षक कह जाता है ।
उसकी बुद्धि पर बारम
बार तरस आ जाता है ।।
भाजपा सपा बसपा कांग्रेस
इनकी कोई ना जाति है ।
नीयत नीति और नियति
कूटनीति व राजनीति है ।।
सनातन की रक्षा को
किसी के सहारे ना रहना ।
भक्ति पूजा उपवास अर्चना
नित्य कर्म करते रहना ।।
वसुधैव कुटुंबकम् की बीज
पूरे धरती पर बोना है ।
लेकिन कट्टरता का चादर नहीं
दधीचि के चरित्र को ढोना है ।।
वोट चाहे जिसको दो
वे सब है राजनीतिक दल ।
भगवत पाठ में रमें रहो
यही सनातन का आंतरिक बल ।।
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महेश ओझा
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गोरखपुर उ. प्र.