सदरीबाज़
सदरी गदर मचाती जाए
कवि बना है सदरीबाज़
बिन सदरी के मंच न चढ़ना
मंचों से कर दो आगाज
सदरी के पीछे है हृदय धड़कता
आती है धक्-धक् आवाज़
कवि ने ज्यों कविता सुनाई
जनता चिल्लाई, सदरीबाज़ ! सदरीबाज़
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
सदरी गदर मचाती जाए
कवि बना है सदरीबाज़
बिन सदरी के मंच न चढ़ना
मंचों से कर दो आगाज
सदरी के पीछे है हृदय धड़कता
आती है धक्-धक् आवाज़
कवि ने ज्यों कविता सुनाई
जनता चिल्लाई, सदरीबाज़ ! सदरीबाज़
-सिद्धार्थ गोरखपुरी