सत्रह
छ:छ: पांच सत्रह का एक दांव शकुनि का क्या बोल गया
विवश हुआ ब्रह्माण्ड लाज का घूंघट भी वो खोल गया
स्वयं प्रभु के रहते कैसे ,विध्वंस की रचना रची गई
युगो युगो तक धुला नहीं वो कलंक वक्त जो घोल गया।
छ:छ: पांच सत्रह का एक दांव शकुनि का क्या बोल गया
विवश हुआ ब्रह्माण्ड लाज का घूंघट भी वो खोल गया
स्वयं प्रभु के रहते कैसे ,विध्वंस की रचना रची गई
युगो युगो तक धुला नहीं वो कलंक वक्त जो घोल गया।