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26 Jul 2023 · 5 min read

*सत्य*

*”सत्य”
सत्य जीवन का आधार है सत्य वचन बोलना सुनना यथार्थ है परमार्थ है। वास्तविक जीवन की पहचान सत्य की राह चलने वाला हर व्यक्ति विघ्न बाधा को पार करते हुए अपने मंजिल तक पहुंच ही जाता है। वही दूसरी ओर अग्रसर वचन द्वारा झूठ की माध्यम से जीवन के सभी कार्य बिगड़ते चले जाते हैं झूठ बोल कर गलत मार्ग का अनुसरण करते हुए जीवन गर्त में चला जाता है एक झूठको छुपाने के लिए सौ झूठ बोलकर ना जाने कितने अपराध कर बैठते हैं।
सत चित आनंद अर्थात सच्चिदानंद !अच्छा मन जो खुश हो, क्योंकि परमात्मा ही संपूर्ण सत्य है ,संपूर्ण चेतना है और संपूर्ण सुख है। इसे केवल मनुष्य ही नहीं जीव भी इसे प्राप्त कर सकता है।
सते हितम यानी सत्य की भावना को मन में बसाकर सत्य बोलने की पहचान तीनों काल में जानी पहचानी जाती है। चाहे वह भूतकाल में ,चाहे वर्तमान में हो या भविष्य काल में कही जानी हो।
सत्य की पहचान व्यक्ति के व्यक्तिगत तौर तरीके रहन सहन माहौल से पता चल जाता है ,जो सत्य पर आधारित है जो पूर्ण रूप से अपने आप पर विश्वास करता है ।जब भी हम धर्म,कर्म पूजा अर्चना के मार्ग पे चलते हैं तो सत्य की राह हमें विश्वास दिलाती है। की जो भी हमा कार्य करते हैं वह सही है गलत तरीके से काम कर रहे हैं,अब दूसरी ओर असत्य की राह पर चलकर हम विचलित हो जाते हैं और फिर उदास निरर्थक अशांत अस्थिर हो जाते हैं।
सत्य के मार्ग पर चलने से मन शांत स्थिर रहता है सुखी जीवन खुशहाल भविष्य सुरक्षित रहता है ,वरना असत्य झूठ फरोब के कारण मन दुखी अशांत सुरक्षित डर की भावना तनाव घेरे रहती है।
कहीं भेद ना खुल जाए ….! कहीं झूठ पकड़ा ना जाए यही दुःख सताते रहता है और नाखुश अशांत मन रहता है।
ईश्वर के तीन रूप है,सत्य ,धर्म, न्याय, ब्रम्हांड की पूरी सृष्टि रचना इसी पर आधारित है ।सत्य दुनिया में विचारों व भाषाओं के अंतर्गत पालन करते हैं।
भगत गीता के अनुसार ;सत्यम शिवम सुंदरम
अर्थात सत्य ही शिव है शिव परमात्मा स्वरूप सुंदर है और भगवान संपूर्ण सत्य है ईश्वर से बड़ा सत्य कुछ भी नहीं है परम ब्रम्ह सत्य ही है।
परमेश्वर ही जीवन सत्य है सत्य के साथ विद्यमान सत्य को प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है ।”सांच को आंच क्या” सत्य के मार्ग पर चलते हुए सच को साबित करने की कोई जरूरत नहीं होती है। किसी भी क्षेत्र में आत्म अवलोकन कर सत्य के मार्ग का अनुसरण करना बेहतर है ।कल्पनाओं व धारणाओं के अलावा संपूर्ण देह धारण करना भी बेहद जरूरी है।
वेद पुराणों ग्रंथो में ही नहीं वरन परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों को सार्थक करने के लिए पृथ्वी पर जन्म से मृत्यु तक अनंत यात्रा चलती रहती है। जो मनुष्य के बीच में रहकर अभिव्यक्त करता है, केवल कटु सत्य वचन जी परमेश्वर के अनुरुप इच्छा का परिणाम है।
सत्य कहां से आता है ….? सत्य मन के अंदर शुद्ध विचार भावनाओं से ही प्रगट होता है,सत्य सार्थक है परंतु झूठ का कोई अस्तित्व नहीं सच कठोर है उसे प्रमाणित करने की लिए आवश्कता नहीं होती है।
झूठ सरल है परंतु ज्यादा दिन तक टिक नहीं सकता, एक झूठ को छुपाने के लिए हजारों झूठ बोलना पड़ता है ,परंतु सत्य हमेशा अकेला ही काफी है।
सत्य को प्रमाण की जरूरत नहीं पड़ती हैं। अधर्म को धर्म राक्षस को ईश्वर पर पाखंडी को परमात्मा समझने लगते हैं तो सत्य को परेशान होना पड़ता है।
सत्य द्वेष भावना भी रखता है ,जब कार्य सुचारू रूप से नही हो पाता तो इसकी गुणवत्ता पर प्रश्नचिंह सा लग जाता है, सत्यवचन बोलकर भी काम नहीं हो पाता तो लोग असत्य की राह पे चलकर अपना काम करवा लेते हैं तब वहां पर गुस्सा तनाव खीज उत्पन्न हो जाती है, लगता है कि असत्य की राह आसान है,लेकिन अंत में सत्य की ही जीत निश्चित होती है।
सत्य सच्चे व्यक्तित्व की परीक्षा लेता है समाजिक व धार्मिक कर्मकांड में सत्य ही जीत जीतता है।उसके विपरीत
झूठ बोलने वाला पाखंडी असत्य तोड़ देता है और हार जाता है।
धार्मिक ग्रंथ में भी सत्य का प्रभाव है ,सत्य वचन बोलने से मन शांत वह स्थिर रहता है असत्य वचन बोलने से मन अशांत और अस्थिर रहता है, खुद ही अपने झूठे बुने हुए जाल में फंस जाता है घिर जाता है जहां से निकलना मुश्किल होता है।
सत्यवादी को भी कभी कभी गुस्सा आने लगता है लेकिन गुस्से को गर काबू में कर ले तो हमेशा शांत स्वभाव स्थिर हो जाता है और सारी परेशानी दूर होने लगती है।
जीवन जीने के लिए सरल सहज सत्य वचन बोलना ही जरूरी है कोई हमें पसंद करें या अपनी स्वीकृति दे या ना दे। हमें कठिन कार्य करके ही सत्य वचन बोलकर मजबूत बनना है। सत्य परम शांति की ओर ले जाने वाला पहला कदम है, अधिकांश लोग समझते हैं जीवकोपार्जन के लिए कठिन विकल्प चुनना मुश्किल कार्य है । विध्न बाधाओं में में फंस जाने के कारण भी सत्य की राह छोड़ देते है जो गलत है।किसी भी तरह विपरीत परिस्थितियों में भी सत्य की राह ही आसान कार्य पूर्ण कर जाती है।
जीवन में खुश रहने के लिए सत्य मार्ग पर चलना जरूरी है जो भी हम महसूस करते हैं उसे अपनी रुचि को पसंद के अनुसार कर्म करना ही बेहतर है। इसी सत्यता के आधार पर ही संचालित होता है कि सत्य वचन के द्वारा ही हम खुश रह सकते हैं हमें खुश रहना है या दुख यह चुनाव हमारा स्वयं ही है।
आत्म चिंतन प्रत्येक कर्म फल के कारण हमें अलग-अलग कर्म का फल भोगना पड़ता है। अच्छे कर्म का फल अच्छा बुरे कर्म का फल बुरा ही प्रभाव देता है। कर्म फल के स्वरूप ही सुख दुख अच्छा बुरा प्रभाव पड़ता है ।अनेक योनियों में जन्म मिलने के बाद ही मनुष्य का जन्म मिलता है ।कर्म फल के अनुसार अंतिम अवस्था में फिर मुक्ति मिल जाती है मृत्यु की स्थितियां भी निर्धारित होती है।
वास्तव में ज्ञान की अनंत राशि है और जीना सत्य है।
“राल्फ वाल्डो ने कहा है”
स्वतंत्रता एक धीमा फल है यह कभी भी सस्ता नहीं होता इसे कठिन बना दिया गया है, क्योंकि स्वतंत्रता मनुष्य की उपलब्धि और पूर्णता है।
बस हमें जीवित रहने के लिए सत्य मार्ग पर चलते रहना है सीखते ही रहना है वही सुखी स्वतंत्र उपयोगी जीवन का मार्ग है।
जीवन यात्रा में शामिल होकर हम शायद कभी कहीं नहीं पहुंच पाएंगे लेकिन बहुत कुछ सीख कर हासिल करेंगे। छल कपट दिखावा का मार्ग नहीं सीधे-साधे ईमानदारी के मार्ग पर सत्य के राह पर ही चलना होगा।
“सत्य , प्रेम,न्याय,दया, करूणा,के साथ ही जीवन जीने की कला को सीखना होगा”
सत्य मेव जयते
शशिकला व्यास शिल्पी

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 272 Views
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