सत्य स्नेह
सत्य स्नेह (त्रिभंगी छंद )
है जिसका जिस पर,सत्य स्नेह प्रिय,छू लेता है,लक्ष्य सदा।
वह हार न माने,चले रात दिन,चिंतन करता,प्यारशुदा।।
नित प्रिय हित साधक,शुभ आराधक,उत्तम वाचक,मधु वचना।
मिलने को आतुर,रहता हरदम,करता जाता,दिव रचना।।
वह बढ़ता रहता,जपता रहता,प्रेम पिपासू ,सा दिखता।
मन अति निश्चल है,कपटहीन है,प्रिय कुलीन है,शिव लगता।।
जो सत अनुरागी,वह वितरागी,जन सहभागी,उर्मिल है।
जिसको वह चाहे,उसको पाये,शीश झुकाता,प्रेमिल है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।