*सत्य राह मानव की सेवा*
सत्य राह मानव की सेवा
दुखी जनों की सेवा करना,ही जीवन का सार।
दुखियों को ही साथी मानो ,कराना अंगीकार।
वही धर्म की धूरी बनकर,करता धर्म प्रचार।
इस जगती में वह लेता है,दिव्य भाव आकार।
धरती पर वह पूजनीय हो,बन जाता सरकार।
मान सहित जीवन जीता है,कहलाता रखवार।
उसके आगे सब झुकते हैं,करते शिष्टाचार।
प्रिय मधु मास बना वह दिखता,बनकर सुखद बहार।
मानवता की शिक्षा देता, जैसे मधुर बयार।
सेवा दानी शीतल छाया,पाता निश्चित प्यार।
अमर कहानी लिखता रहता,याद करे संसार।
करे भरोसा उस पर दुनिया,वही सफ़ल पतवार।
दीनों को वह गले लगाता,करता नौका पार।
चोटिलज़न के निकट बैठ कर करता प्रिय व्यवहार।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।