सत्य बदलकर झूठ में, लगा रहे हैं आग। सत्य बदलकर झूठ में, लगा रहे हैं आग। झुलसें कलियाँ फूल औ, झुलस रहे हैं बाग।। ✍️अरविन्द त्रिवेदी