“सत्य – नश्वर”
हाँ,
सत्य हो तुम
बस सत्य…
न तुम मे प्रेम है न हर्ष
न ही तुम्हारा उत्सव होता है।
होती है
तो पीड़ा,शोक,चीत्कार।
मैं,
मिथ्या ही सही
किन्तु,
मुझमें हर्ष है,पुलक है,प्रेम है
और है अनन्त उत्सव….।
तुम अटल, अकाट्य हो
किन्तु…,
स्वीकार्य कहाँ हो..?
मैं क्षणिक, नश्वर
किन्तु,
सहज स्वीकार्य…।
हे परम सत्य!
यह भी सत्य है कि,
मातम पर उत्सव सदैव भारी है।
©निकीपुष्कर