सत्य का दीप सदा जलता है
सत्य का दीप सदा जलता है
गरमाता हैं तारों के नीचे
थरथराती , कंपकपाती
शीतलहरों में जूझते प्राणों को…
सत्य है उतना.. ही साध्य
सांसों का मोह है जितना बाध्य
उष्णता की जरूरत है उतना
भटकता मानवता है जितना
चाहे नीर भरे हो नैनों में
चाहे पीर भरे हो अंतस में
चाहे स्वप्न शापित हो अयन
सत्य का दीप सदा जलता है
लौ चुभता अनायास नभ छूते घरों पर
जिनके चलती है सांसे किराए पर
सांच, आंच,को कांच दिखलाता
सत्य का दीप सदा जलता है