* सताना नहीं *
** गीतिका **
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गलत राह पर पग बढ़ाना नहीं।
स्वयं को कभी भी सताना नहीं।
कभी भी समय जब न अनुकूल हो।
अकारण कठिन पग उठाना नहीं।
हृदय आ गया हो किसी पर अगर।
कभी चूकना फिर निशाना नहीं।
कहें लोग कहते रहें व्यर्थ में।
हमें तो बुरा अब मनाना नहीं।
जहां राजनेता बहुत भ्रष्ट हैं।
उन्हें वोट देना दिलाना नहीं।
किसी स्वार्थ के हित वशीभूत हो।
कभी शीश अपना झुकाना नहीं।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०५/११/२०२३