सजल
सजल
हो गए पत्थर दिलों पर क्या असर होगा
रो न आँसू से न रेगिस्तान तर होगा ।
एक दिन तुम इस नदी से पार हो लोगे
आपदाओं से घिरा कब तक सफर होगा ।
दुख न कर तुम तोड़ लोगे चाँद, नभ-तारे
हौसला मजबूत जीवन में अगर होगा ।
सामने जो पीर का गहरा समुंदर है
डूबता गहराइयों में फिर शहर होगा ।
दूर हो कोई न दिल से फिर कभी अपना
काम कर हर एक पहलू कारगर होगा ।
तरसते हैं पेट भूखे आज भी कितने
कर भला सबका कभी खाली न घर होगा ।
मौसमी बन कर रहो सबके दिलों में तुम
रँग बिखरता देख लो चारों तरफ होगा ।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा ‘
वाराणसी