सजल
1222 1222 1222 1222
सजल
जवानी जोश में रहती, करे क्या होश की बातें,
उसे क्या फर्क पड़ता है, किसी ने प्राण है हारा।
बड़ी रफ्तार में गाड़ी, किसी ने जोर से मारा ।
छुटी है हाथ से लाठी, बदन भी कांपता सारा,
पड़ा है वृद्ध इक घायल,दवा लेने चला था जो,
लगी है चोट माथे पे, बहे है खून की धारा।
उठाये कौन अब उसको, सभी हैं पास से जाते,
कराहे है पड़ा नीचे, सड़क पर काक ज्यों कारा ।
भरे हैं आँख में आँसू, कठिन है साँस भी लेना,
करे उम्मीद अब किस से, दिखा अब स्वर्ग का द्वारा।
बला की भीड़ देखे वो,मगर है कौन अपना सा,
बने पाषाण से बंदे, अजब सा खेल है न्यारा।
विदेशों में बसे बच्चे, तके माँ बाप अब राहें,
अकेले जी रहें हैं वो, जिन्होंने वक़्त है वारा ।
बुढापा रोग भारी है, जकड़ लें लाख बीमारी,
समय देता नहीं कोई, बताओ तो जरा चारा।
रुदन हैं रूह से करते ,नहीं है दर्द की ‘सीमा’,
अरे वो शान हैं घर की, सजा निज धाम लो प्यारा।
सीमा शर्मा ‘अंशु’