सच
कह गए संत यह संसार झूठा है
ताजुब यह है की झूठी यही सभी का सच है
लोगों के इस संसार में सच की क्या कीमत है
सच यह भी है कि सच जिसने बोला है
अपनी ही इमानदारी गवाही है
समझअब यह नहीं आता
बोला झूठ जाए या सच
सच यह भी है कि
सो झूठ में सत्य अकेला है
और झूठे लोगों की महफिल में
मैं खुद अकेला हूं
सच बोलने की कीमत मैंने
क्या खूब पाई है
लोगों के झूठ में अपनी ही तोहीन करवाई है
चाहता हूं अब झूठ मैं भी बोलूं
पर अपने जमीर से मेरी सगाई है
सच मेरा मैं जानू या रब जाने
किस-किस को यकीन दिलाऊ
यह सच तुम्हारी भी बुराई है
सच बोलने की कीमत मैंने
क्या खूब पाई है
सच जिसने भी बोला
उसकी जग हँसाई है
झूठों की इस बस्ती में
सच ने क्या पहचान करवाई है
दामन सच का थाम कर जिंदगी अपनी गवाही है
अपने ही स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई है
सच बोलने की कीमत
क्या खूब मैंने पाई है