सच में पिता के हाथों में जादू है
पापा की परी उस समय मात्र छः माह की थीं,जब ये घटना घटी।
उस नन्ही सी जान को एक विचित्र रोग ने छू लिया था, विचित्र इसलिए की जिस डॉ० के पास ले गया गया।वह भी ऐसा रोग कभी नहीं देखा था, यहां तक कि उस डॉक्टर ने उस बच्ची को छुआ तक ही नहीं, उसके माता-पिता के ज्यादा अनुग्रह करने से उस डॉ० ने उस बच्ची को दूर से देखकर एक दवा लिख दी।
और कहां, अगर ये बच्ची बच गई तो तुम्हारे भाग्य हैं नहीं तो इसका बचना संभव नहीं है।
वैसा ही हुआ एक रोज़,जैसा डॉ ने कहां था,मगर उसके पिता डॉ के बात से सहमत नहीं थे।
उस रोज सभी अपने-अपने कामों में व्यस्त थें, तभी किसी का नज़र उस बच्ची पे पड़ी, उसके शरीर में कोई हरक़त ना हो रही थीं,वह उस बच्ची के पास गई,उसे अपने हाथों से छुआ,उसका नब्ज़ भी देखा।
मगर कोई हरक़त ना हुई,वह चीखते-चिल्लाते हुए,बोली गुड़िया अब नहीं रही।
उसकी मां जब ये बात सुनी,वह सारे कामों को छोड़कर दौड़ती हुई अपनी बच्ची के पास आकर उसे सीने से लगा लिया।
उसकी ममता ने कई तरह से उसे होस में लाने की चेष्टा की,मगर सब-के-सब पैंतरे विफल हो गए।
उसे देखकर और जोर-जोर से रोने लगी, आस-पास के लोग भी इक्कठे हो गए।
उस बच्ची को देखकर सब लोग न जाने कैसी-कैसी बातें बनाने लगें,उन सब लोगों की बात सुनकर मां की ममता और फूट-फूटकर रोने लगी।
वक़्त भी मुंह फेरकर उलटी चलें चलने लगा,खुदा भी मौन होकर बैठे-बैठे आसमां से एक बेबसी का आलम देखने लगा।
तभी उसका पिता घर आए, सभी ने कहां,वे दौड़कर अपनी गुड़िया के परी के पास गए।
अपनी बच्ची को उसकी मां के गोद से झट से लें लिये।
उसकी मां अपने सीने से लगाए उस मरी बच्ची को अपने से दूर नहीं होने देना चाहती थीं,
वह डर रहीं थीं, वहीं दुनिया के रितो में हमारी बच्ची ना फंस जाए।
उसके पिता ने जैसे ही अपने गोद में लेकर उसको नाक हल्के हाथों से दबा उसकी परी आंखें खोलकर देखने लगी।
ये चमत्कार एक जादू सा लगा,जो खुदा ना कर सका,ओ एक पिता के हाथों ने कर दिखाया।।
नीतू साह
हुसेना बंगरा,सिवान-बिहार