सच कहता हूं मैंने मेले देखे हैं।
मतला:
सच कहता हूं मैंने मेले देखे हैं।
लेकिन उनमें लोग अकेले देखे हैं।
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गर्द उड़ाती भीड़ के रेले देखे हैं।
सच कहता हूं मैंने मेले देखे हैं।
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गुरुओं की गद्दी को कब्जा लेते हैं।
होनहार ऐसे भी चेले देखे हैं।
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एक बूंद की चाहत में बेरंग हुए।
दूर दूर तक आंचल फैले देखे हैं।
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गल जाते हैं अहसासों की गर्मी से।
पत्थर के ऐसे भी ढेले देखे हैं।
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जिनके कमरों में हैं काले राज़ छुपे।
ऐसे उजले महल दुमहले देखे हैं।
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देख के तुझको क्यों मुझको हैरानी हो।
नए नहीं हो तुमसे पहले देखे हैं।
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वक्त न हो तो सब बेकार ठहरते हैं।
खूब यहां पर नहले दहले देखे हैं।
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भीड़ भाड़ वाले तो सबको दिखते हैं।
हमने तन्हाई के मेले देखे हैं।
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मक्ता:
“नज़र” ज़हर की आदत हमको बरसों से।
सदियों से ही सांप सपोले देखे हैं।
कुमारकलहंस।