सच्ची दोस्ती
बचपन के दो दोस्त थे – रघुवीर और धर्मवीर । दोनों की शक्ल बहुत मिलती जुलती थी । दोनों जब बड़े हुए तो सेना में भर्ती भी साथ साथ हुए । रघुवीर अनाथ था । धर्मवीर की बस एक माँ थी।दोनों की दोस्ती बहुत गहरी थी। जब दोनों बॉर्डर पर ड्यूटी के लिए गए तो दोनों को एक ही जगह पर ड्यूटी करने को मिली । दोनों मन लगाकर ड्यूटी करते और साथ साथ ख़ाना खाते। जब धर्मवीर अपने घेर पत्र लिखता तो रघुवीर उदास हो जाता,क्योंकि उसका कोई नहीं था।तो धर्मवीर उसको बोलता की मेरी माँ भी तो तेरी ही हैं।धर्मवीर उसकी तरफ़ से भी अपनी माँ को पत्र लिखता। उसकी माँ बहुत प्रसन्न होती और खूब आशीर्वाद देती दोनों को । दिन बीतते गए । एक दिन दुश्मनों ने ठिकाने पर हमलाकर दिया। सेना ने जमकर उनका सामना किया। इस लड़ाई में रघुवीर दुश्मनोंके सामने आ गया और उसको गोली लगने ही वाली थी कि धर्मवीर मौक़े से वहाँ पहुँच कर रघुवीर को बचा लेता है और ख़ुद गोली अपने सीने पर ले लेता है ।फिर रघुवीर उसे वहाँ से निकल कर के आता है , लेकिन तब तक बहुत देर हो जाती है । धर्मवीर बोलता है,” मेरे दोस्त मेरी माँ का ख़याल रखना।” रघुवीर को ये बात उसके दिल पर लगी थी । उसकी वजह से ही उसके दोस्त की जान गई थी।ये बात उसे बहुत दुःख देती । उसने मन ही मन ठान लिया कि मैं धरम की माँ का हमेशा अपनी माँ की तरह ही ध्यान रखूँगा। फिर उसने हमेशा ऐसा ही किया।
तो ये थी दोस्तों मेरी कहानी । जिसमे दोनों दोस्तों ने अपनी अपनी दोस्ती सच्चाई से निभाई। आशा है आपको पसंद आएगी।