सचेतक सन्त कबीर
एक सार्थक सचेतक सन्त कबीर
कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे।
इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया।उनके लेखन सिक्खों के आदि ग्रंथ में भी मिलाता है।जन्म:
विक्रमी संवत १४५५ (सन १३९८ ई
वाराणसी,बनारस,(हाल में उत्तर प्रदेश, भारत)मृत्यु:विक्रमी संवत १५५१ (सन १४९४ ई मगहर,(हाल में उत्तर प्रदेश, भारत)कार्यक्षेत्र:कवि, भक्त, सूत कातकर कपड़ा बनाना भाषा:हिन्दी
काल:भक्ति काल
विधा:कविता
विषय:सामाजिक, आध्यात्मिक
साहित्यिक आन्दोलन:प्रमुख कृति(याँ):बीजक “साखी ,सबद, रमैनी”
वे किसी भी धर्म की कुप्रथाओ कुरीतियो,असमानताओं,अमानवीयता के ख़िलाप रहे है,उन्होंने खुले तौर पर हिन्दू धर्म व इस्लाम के आलोचक थे।उन्होंने यज्ञोपवीत और ख़तना को बेमतलब क़रार दिया और इन जैसी धार्मिक प्रथाओं की सख़्त आलोचना की थी।
उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।
कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं।
कबीर की लेखनी वाणी से उस वक़्त भी असरकारक रही आज भी सार्थक है,उनके निर्गुण पंथ के प्रवर्तक आज भी कबीर वाणी के जन जन तक पहुचाने का कार्य कर रहे है,कबीर ने सभी के लिये समानता,ज्ञान,तर्कक बुधिपरख को प्रथम दिया है,
कबीर किसी धर्म के नही बल्कि सभी धर्मों के सार्थक मानव्हितार्थ उद्देस्यो का बखान करते रहे सदैव ही मूर्तिवाद, व्यक्तिवाद,जातिवाद,समान्तवादी, पाखण्डी व्यवस्था से समाज को आगाह आगाज जाग्रत करते रहे है,
कबीर आज भी आदर्श है उस वर्ग व्यक्ति के लिये जिसको मूल रूप से सार्थक जीवन जीना है,,,
कबीर खड़ा बाजार मैं सबकी मांगे खैर,,
न काहू से दोस्ती न काहू से बैर,,
ये से सार्थक लेख,दोहों,वचनों,बातों से सदैव ही जन जाग्रति का पर्याय बन सन्त कबीर को उनके जन्मजयंती पर आज दिनांक 28/6/2018गुरुवार को कोटिशः नमन और सभी को शुभकामनाएं बधाई,,,
मानक लाल मनु??✍✍