सचिन के दोहे
नारायण उर मे बसें, भटक रहा है जीव।
दुग्ध बिना कैसे मिले, जग को उत्तम घीव।।
कष्ट सहन होता नहीं, रघुवर देखो आज।
दुष्ट दनुज सब मस्त हैं, बजे पखावज साज।।
नन्द नगर में गूँजता, आज बधाई गीत।
जन्मे है पालनहारा, कृष्णा रंग पुनीत।।
मन काला तन श्वेत है, कहता खुद को संत।
इनसे उत्तम तो लगें, कानन के सब जंत।।
नाम राम का जब रटे, उर से मिटे विकार।
मुक्त सभी अवसाद से, स्वप्न होत साकार।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’