सचमुच सपेरा है
नफ़रतों को बीन से जिसने बिखेरा है
आदमी अब हो गया सचमुच सपेरा है
रोशनी से जगमगा कोठी रही फिर भी
ढो रहा दिल में घना वह तो अँधेरा है
शोर पैदा शब्दों में कर ले सुनेंगे सब
मत कहे कोई ये शब्द का लुटेरा है
जोड़ता ही जा रहा अब वक्त को वो यूँ
लाद गठरी पीठ पर जैसे ठठेरा है
दर्द अब दिल का नहीं सबको दिखा सकता
चित्र में ही (सुधा) दर्द अपना वह उकेरा है
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
24/4/2023
वाराणसी,©®