सगण के सवैये (चुनाव चक्कर )
नरक चौदस
सुन्दरी सवैया 25
8 सगण एक गुरू
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नरकासुर को मुरली धर ने,
दिन आज धरा पर था ललकारा।
खगराज विराज गये लड़ने,
सतभामहिं संग विवेक विचारा।
जबमातु कहे तब लाल मरे,
वह थीं खुद ही धरणी अवतारा।
प्रिय ने वध हेतु कहा जबही,
उस दुष्ट निशाचर को प्रभु मारा।
कुंदलता 26
8सगण 2 लघु
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जिनको चुनके दुख दूर न हों,
उनको अब क्या चुनना अपनाकर।
वह चूर रहें अपने पद में,
नहिं दीन लखें निज आँख उठाकर।
जनके हितमें न किया कुछ भी
जनता तरसी न मिले ढिग आकर।
उनसे कर जोड़ करी विनती,
न सुनी व गये मुख को बिचका कर।
अरविंद 25
8 सगण 1 लघु
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कहिं नोट बटें कहिं दारु मिले,
कहिं जाति समाज करें गुणगान।
नहिं लालच में तुमको फसना,
करना असली नकली पहचान।
इसके उसके हित देख गुनें
नहिं शेष बचें कुछ भी अरमान।
इचकें झिझकें न डरे मन में,
खुलकेदिलखोल करें मतदान।
महामंजीर 26
सगण लघु गुरू
अपना गणतंत्र महान बने,
पद की गरिमा महिमा पहचान जी।
छल छिद्र दिखावट हो न कहीं,
सबका हित ही हिय में रख ध्यान जी ।
जल से थल से पथ से सुख हो,
सरकार विचार रुचें शुचि मान जी ।
मिलके खिलके सब फूल समा न।
रखें अपना यह हिंदुसतान जी।
कुसुमस्तबक सवैया
9 सगण 27 वर्ण
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पटिया पर बैठ विचार करें,
मत की खटिया मनमें बुनते बुनते।
बरसों निकले गप मार रहे अब
कान पके उनको सुनते सुनते।
कुछ भी न विकास किया अबलौ,
उनको हम हार गये चुनते चुनते।
फिरआज वही कर जोड़ खड़े,
मन में हम शीश रहे धुनते धुनते।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
11/11/23