सखी या आँसू छंद
सखी या आँसू छंद
14 मात्रायें 3 चौकल
अंत में यगण या मगण।
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भिखारी की भूख
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घर से ज्यों बाहर आए,
देखा है एक भिखारी।
लगता था भूखा प्यासा,
जो भोग रहा लाचारी।
मैं पास गया फिर उसके,
अति प्रेम जता यह पूछा।
किस कारण पथ में लेटे,
वह उत्तर देता छूछा ।
परसों से कुछ खाने को,
मिल पाया है ना दाना ।
अटकी है सांस कहाँ पर,
मैंने अबतक ना जाना।
चलने फिरने की ताकत,
किंचित न बची है तन में।
लगता है यम आ पहुँचे,
जा प्रान रहे हर छन में।
इस वृद्धापन के मारे,
मेरा यह हाल किया है।
बेटे ने सबकुछ लेकर,
रस्ते में डाल दिया है।
कैसे बतलाऊँ तुमको,
निर्माण किया मर मर है।
हूँ जिसको छोड़ सड़क पर,
मेरा भी अपना घर है।
ऐसे कैसे मर जाओ,
जीवन ना जाने दूँगा।
केवल रोटी के कारण,
यम को ना आने दूँगा।
बैठाल उसे छाया में,
भरभेट कराया भोजन।
आशीष लगा वह देने,
लख होता खास प्रयोजन।
सबको दे भगवन रोटी,
यह वक्त कभी ना आए।
कोई भी भूखा प्यासा।
तेरी दुनियां से जाये।।
बस यही प्रार्थना लेकर,
चरणों में सिर धरते हैं,
कट जाय बुढ़ापा सुख से,
अब बंद कलम करते हैं।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
2/12/23