Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Apr 2017 · 4 min read

संस्मरण

संस्मरण-पहला प्यार।

लोग कहते है- “पहला प्यार भुलाये,नही भूलता”
अनायास ये सवाल जहम में रोधने लगा,हर बार की तरह गर्मी की दुपहरी थी और मै तन्हा खुद से ये सवाल पूछती की कीतना सच है ये?
सवाल गहरा था,तो उत्तर के लिए भी गहराई में जाना पड़ा।पिछली जिंदगी के सारे पन्ने खोल के दोहराया, पर इस का जबाब नही मिल रहा था।
बचपन से आदत रही है कि एक किताब और एक जबाब से संतुष्टि नही मिलती,तो पुनः एक बार विचार किया कि क्या एक हम-उम्र के विरोभी लिंग के साथ होने वाला आकर्षण ही पहला प्यार होता है क्या?
क्योकि मुझे ऐसा कुछ भी याद नही आ रहा था जो बहुत सुखद अहसास हो।
फिर सोचा क्या शादी के बाद पति से किया प्यार- पहला प्यार ही था,तो भी उतना सुखद उत्तर नही मिला,क्योंकि जब किसी चीज की जानकारी नही हो और फिर उसे आगे बढ़ाया जाए,तो वो तो फर्ज ही था। जो की मेरे द्वारा निभाया जा रहा था।
प्यार खुद की अनभूति होती है,पति के साथ रहना और प्यार करना एक जिमेदारी कम और फर्ज ज्यादा थी।
ऐसी सवाल को और गहराई में सोचा तो याद आया,मम्मी का दिया आदेश की अगर पापा से प्यार करती है,तो उनकी इज्जत बनाये रखना।जहाँ से शादी हुए,उस घर से बुराई मत लाना और लड़ाई हो तो मेरे घर मत आना।
इतने बड़े आदमी नही की दुबारा शादी कर दे ,इतने भी नही की तुझे अपने साथ रख ले। समाज की बुराई सुनने की शक्ति नही।
इस लाइन को याद आते ही याद आया की पापा की इज्जत और प्यार की खातिर ही तो सारी जिंदगी सँघर्ष किया कि कही पापा को चोट ना पहुँचे, उन्हें बुरा ना लगे की उन की बेटी खुश नही या उन को तकलीफ न हो।
फिर जहम में आये इस सवाल का उत्तर मिलना नजदीक था कि इस का मतलब मेरा पहला प्यार पापा ही तो थे।
जिन को याद कर आज भी आँखों से आंसू की धार बहने लगती है,वो सारी बातें जो प्यार के लिए लिखी और कही जाती है,वो प्रतकिर्या सिर्फ़ पापा नाम से ही होती है,मेरे दिल में।
एक सुखद अनुभति का अहसास सा हुआ,तो सोचा और करीब से समझा जाये प्यार को और पापा और मेरे रिश्ते को।
मुझे याद है जब छोटी थी,मम्मी से ज्यादा पापा की लाडली थी और पापा से ही प्यार था मुझे। पापा के साथ रहना मतलब जिंदगी सुखद थी।मम्मी के बजाय पापा के साथ रहना मेरी पहली पसंद थी।
हमारा छोटा परिवार मम्मी,पापा, दीदी,छोटा भाई
और मैं।पापा सरकारी नोंकरी में थे तो हम यहाँ मथुरा से दूर पापा के साथ रहते थे।
कभी जब मम्मी मथुरा आती तो छोटे भैया को साथ ले जाती थी।मैं दीदी और पापा ख़ुशी ख़ुशी रह जाते।वो दिन जिन्दगी के प्यारे दिन होते,दीदी कॉलेज चली जाती और बड़ी थी तो अपना ख्याल रख सकती थी,इसलिए पापा निशचिंत रहते दीदी को ले कर और मुझे वो अपने साथ ऑफिस ले जाते।शाम को घर आते फिर खाना बनाते और दोनों बहन को खिला के बर्तन भी खुद ही साफ़ करते फिर सो जाते थे।
हम दोनों बहन टीवी देख सो जाते।
फिर जब बड़ी हुए 10 में आयी तो बोर्ड एग्जाम सेंटर दूर था।वैसे दीदी के कॉलेज में था,पर पापा मुझे अपनी साइकिल पर छोड़ने जाते और फिर गेट तक छोड़ ऑफिस चले जाते और बोल के जाते के मैं लेने आऊँगा, अकेले मत जाना।एग्जाम छूटते ही गेट के बहार पापा अपनी साइकिल लिए मेरे इंतजार करते मिलते,मुझे घर छोड़ के फिर ऑफिस चले जाते।पापा की लाडली थी,तो पापा के साथ उन के ऑफिस फंक्शन और शादी में भी अकेले मैं और पापा जाते,उन की साइकिल पर।
फिर जब 10 पास किया हम मथुरा शिफ्ट हो गयी दीदी की शादी करनी थी इसलिए।
मथुरा नया था मेरे लिए,यहाँ भी पापा के साथ उन की साइकिल पर ही गर्ल्स कॉलेज गयी।उम्र तो महज 13 साल थी,छोटी बच्ची थी फ्रॉक और स्कर्ट-टॉप पहनती थी,पर कॉलेज में सलवार-शूट पहनना जरूरी था।पापा ही टेलर से सिलवा लाये बिना मेरा नाप दिए।
फिर 15 साल की उम्र में 12 पास कर लिया।अब बारी आयी डिग्री कॉलेज की गर्ल्स कॉलेज में ही एडमिशन लेना था तो जो सब्जेक्ट्स मिले वो ही पढ़ना जरूरी था।चॉइस नही थी।पहला कॉलेज का दिन और पापा अपने साथ ले के गये और घर छोड़ के भी और रस्ता समझ दिया की घर से कॉलेज यही से जाना है बीच में बॉयज कॉलेज पड़ेगा वहाँ से नही जाना और ना ही आना है,किसी लड़के से बात भी नही करनी है।
पापा की बात मेरे लिए पत्थर की लकीर थी,सो जल्दी ही समझ ली।1 ईयर पूरा हुआ और मम्मी ने शादी तय कर दी,उन के मायके के पड़ोस में।
पापा का मन नही था,पर मम्मी की जिद थी।
भरोसा दिलाया कि मुझे बी.ए. के बाद भी पढ़ने का पूरा मौका मिलेगा,इसी शर्त पर पापा मेरी शादी करने को तैयार हो गए।
शादी हुए फिर 16 साल की उम्र में और 17 साल की उम्र में माँ बनना बहुत अजीब था सब कहानी जैसा,जिस दिन मेरा 18 बर्थडे था उसी दिन पहली बार माँ बनी।
माँ बनने की ख़ुशी कम और 40 दिन अब ससुराल रहना था इसी बात का दुःख था।
एक महीने में इतनी बीमार हो गई डॉ.घर बुलाया पर मेरी जिद थी,पापा से मिलना है। पापा घर आये,कमरे में मिले और सब को बोला बहार जाओ,मुझे बेटी से मिलना है।
फिर पास आये सर गोद में रखा और प्यार से पैर में दर्द था,सर भी दबाये और गोद में सर रख के बोले,तू पापा के पास है सो जा,बस 8 दिन और फिर अपने घर रखूंगा,जल्दी अच्छी हो जा घर आना है तो।
बस इसी लालच में की पापा के घर जाना है,जल्दी अच्छी हो गयी।
तो मेरा पहला प्यार मेरे पापा ही थे,और रहेंगे भी हमेशा।
पापा आप हमेशा मेरे साथ,मेरे हर मुसीबत में हो।
मेरे दिल में सिर्फ आप ही हो।
i love you papa?

✍संध्या चतुर्वेदी।
मथुरा यूपी

Language: Hindi
411 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
*गम को यूं हलक में  पिया कर*
*गम को यूं हलक में पिया कर*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
चलो♥️
चलो♥️
Srishty Bansal
उनसे बिछड़ कर ना जाने फिर कहां मिले
उनसे बिछड़ कर ना जाने फिर कहां मिले
श्याम सिंह बिष्ट
तलाशता हूँ -
तलाशता हूँ - "प्रणय यात्रा" के निशाँ  
Atul "Krishn"
गणेश जी पर केंद्रित विशेष दोहे
गणेश जी पर केंद्रित विशेष दोहे
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ख़ास तो बहुत थे हम भी उसके लिए...
ख़ास तो बहुत थे हम भी उसके लिए...
Dr Manju Saini
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
काली मां
काली मां
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
मत कर
मत कर
Surinder blackpen
ज़रूरतमंद की मदद
ज़रूरतमंद की मदद
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
जय श्री राम
जय श्री राम
Er.Navaneet R Shandily
लहर-लहर दीखे बम लहरी, बम लहरी
लहर-लहर दीखे बम लहरी, बम लहरी
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
If I were the ocean,
If I were the ocean,
पूर्वार्थ
मुक्तक
मुक्तक
नूरफातिमा खातून नूरी
*स्वयंवर (कुंडलिया)*
*स्वयंवर (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
"निरक्षर-भारती"
Prabhudayal Raniwal
2440.पूर्णिका
2440.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
💐प्रेम कौतुक-232💐
💐प्रेम कौतुक-232💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
"अन्तर"
Dr. Kishan tandon kranti
विदाई गीत
विदाई गीत
Dr Archana Gupta
फितरत दुनिया की...
फितरत दुनिया की...
डॉ.सीमा अग्रवाल
#शिवाजी_के_अल्फाज़
#शिवाजी_के_अल्फाज़
Abhishek Shrivastava "Shivaji"
माँ शेरावली है आनेवाली
माँ शेरावली है आनेवाली
Basant Bhagawan Roy
#लघुकथा-
#लघुकथा-
*Author प्रणय प्रभात*
"एक विचार को प्रचार-प्रसार की उतनी ही आवश्यकता होती है
शेखर सिंह
मुस्कुरा ना सका आखिरी लम्हों में
मुस्कुरा ना सका आखिरी लम्हों में
Kunal Prashant
कविका मान
कविका मान
Dr. Sunita Singh
अब जीत हार की मुझे कोई परवाह भी नहीं ,
अब जीत हार की मुझे कोई परवाह भी नहीं ,
गुप्तरत्न
उफ़ ये बेटियाँ
उफ़ ये बेटियाँ
SHAMA PARVEEN
मुझसे बेज़ार ना करो खुद को
मुझसे बेज़ार ना करो खुद को
Shweta Soni
Loading...