संस्मरण – आस्था
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❆ संस्मरण – आस्था
❆ तिथि – 06 दिसम्बर 2018
❆ वार – मंगलवार
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बात सन् 1989 की है करवा चौथ का दिन था, स्वाभाविक है कि धर्मपत्नी के व्रत था। सुबह से ही भूखी-प्यासी, भाग-भाग कर सारे दिन से काम भी करती जाती… जैसा कि आमतौर पर संयुक्त परिवार में होता है।
मैं शाम को कार्यालय से घर आया भोजन के समय सभी के साथ महिलाओं को छोड़कर सभी को भोजन परोसा गया, चंन्द्रोदय में अभी समय था; सभी महिलाओं ने सोचा कि पुरुषों को भोजन करवा मुक्त हो कर कथा सुन कर विधिवत अर्ध्य दे कर आराम से सब साथ मिलकर भोजनोपरान्त बाद का कार्य निपटाकर शयन करेंगे।
मेरे मुँह में उन दिनों छाले रहते थे, जर्दा एवं जर्दे का पान खाने के कारण… भरसक उपाय तथा सभी तरह की औषधि सेवनोपरांत छाले ठीक होने का नाम ही नहीं लेते थे ? जैसे कोई हठ कर लिया हो !
इसीलिए मेरे लिए सब्जी अलग से बिना मिर्च-मसाले के बना कर ठंड़ी कर रखी जाती थी।
उस दिन बहन-बेटियों का भी पीहर में ही आकर व्रत खोलना तथा वहीं बाल-बच्चों संग रहना परम्परा है जयपुर में। इतने अधिक लोगों के काम में मामूली भूल स्वाभाविक ही है।
खाना खाते वक्त मुझे बहुत तकलीफ हुई.. कोई मिर्च लगी करछी मेरी सब्जी में लगी होगी शायद ? श्रीमती जी को अत्यधिक पीड़ा हुई मेरी हालत देख कर… उनसे रहा न गया… सबके सामने कहा.. “हे चौथ माता अगर तू सच्ची है तो इनके छाले कल की तिथि में तत्काल प्रभाव से ठीक कर देना; बदले में चाहे मेरे छाले हो जाएं”…इत्तेफाक कहें..या फिर आश्चर्य… अगले ही दिन.. मेरे छाले पूर्णतया बिल्कुल ठीक हो गए… इतना ही नहीं.. धर्मपत्नी जी के जबरदस्त छाले हो गए, जो करीब एक सप्ताह में ठीक हो सके ?
उस दिन से आजतक मेरे कभी छाले नहीं हुये… बीच में.. मैंने सब कुछ सन् 2005 से 11 तक छोड़ भी दिया था.. किन्तु ढ़िढा़ई यह कि मैं पुनः तम्बाकू खाने लगा हूँ.. आज भी खाता हूँ..?? छोड़ने के लिए मन मजबूत नहीं कर पाता हूँ।।
यह आश्चर्यजनक घटना मेरे मानसपटल पर आज भी कल की सी बात की तरह अंकित है।
सभी की… धिक्कार के साथ यही प्रतिक्रिया होगी आप सबकी कि यह अनुचित है तथा संवेदनहीनता है.. मुझे व्यसन त्याग करना ही चाहिए… अवश्य शीघ्रातिशीघ्र मैं संकल्पपूर्वक यह करुँगा किन्तु सत्य को स्वीकार करना भी अत्यावश्यक है।
इति।
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#स्वरचित_मौलिक_सर्वाधिकार_सुरक्षित*
✍ अजय कुमार पारीक’अकिंचन’
☛ जयपुर (राजस्थान)
☛ Ajaikumar Pareek.
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