संस्कार
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लघुकथा : मनुष्य के मूल संस्कार।
एक परिवार मे तीन भाई और एक बहन थी…बड़ा और छोटा बेटा पढ़ने मे बहुत तेज थे। उनके माँ बाप तो उन चारो से बेहद प्यार करते थे , मगर मझले बेटे से थोड़ा परेशान भी थे।
बड़ा बेटा पढ़ लिखकर डाक्टर बन गया।
छोटा भी पढ लिखकर इंजीनियर बन गया।
मगर मझला बिलकुल अनपढ बनकर ही रह गया।
सबसे बड़े बेटे और सबसे छोटी बेटे की शादी भी हो गई । और बहन ने Love मैरीज कर ली।
बहन की शादी भी अच्छे घराने मे हुई थी।
आखीर उसके दो भाई डाक्टर इंजीनियर जो थे।
लेकिन मझले को कोई लड़की नहीं मिल रही थी। और उम्र भी अधिक होने से माँबापभी परेशान रहते थे ।
बहन जब भी मायके आती सबसे पहले छोटे भाई और बड़े भाई से मिलती।
मगर मझले से कम ही मिलती थी। क्योंकि वह न तो कुछ दे सकता था और न ही वह जल्दी घर पे मिलता था।
वैसे वह दिहाडी मजदूरी करता था। पढ़ नहीं सका तो…अच्छी नौकरी कौन देता।
और एक दिन मझले की शादी करे बिना पिताजी गुजर गये ।
माँ ने सोचा बच्चों में कहीं अब बँटवारे की बात न निकले इसलिए जल्दी में पास ही गाँव से एक सीधी साधी लड़की से मझले की शादी करवा दी।
शादी होते ही न जाने क्या हुआ की मझला बड़े लगन से काम करने लगा ।
दोस्तों ने कहा… ए चन्दू आज शाम को अड्डे पे आना।
चंदू – नहीं अब कभी अड्डे पर नहीं जाऊंगा
दोस्त – अरे तू शादी के बाद तो जैसे बीबी का गुलाम ही हो गया?
चंदू – अरे ऐसी बात नहीं । कल मैं अकेला एक पेट था तो अपने हिस्से की रोटी कमा लेता था। आज दो पेट है , और कल चार पेट हो सकते हैं।
घरवाले मुझे नालायक कहते रहते हैं, मेरे लिए कहते हैं चलता था।
मगर मेरी पत्नी को कभी नालायक कहे तो वो मेरी मर्दानगी पर एक भद्दी गाली है।
क्योंकि एक पत्नी के लिए उसका पति उसकी इज्जत और उम्मीद होता है।
उसके घरवालो ने भी तो मुझपर भरोसा करके ही तो अपनी बेटी दी होगी…फिर उनका भरोसा कैसे तोड़ सकता हूँ ।
दोस्तो, कालेज मे केवल डिग्री मिलती है लेकिन ऐसे संस्कार तो मा बाप से ही मिलते हैं जो मझले बेटे में थे।
इधर घरपर बड़ा और छोटा भाई और उनकी पत्नी मिलकर आपस मे फैसला करते हैं की…जायदाद का बंटवारा हो जाये क्योंकि हम दोनों लाखों कमाते है मगर मझला ना के बराबर कमाता है।
लेकिन मां मन-ही-मन मझले बेटे से बहुत प्यार करती थी ,और उसकी बहुत देखभाल भी करती थी इसलिए वह बंटवारा नहीं चाहती थी।
उसने बंटवारे के लिए दोनों बेटों को मना भी किया।
लेकिन मां के लाख मना करने पर भी…बंटवारे की तारीख तय होती है।
बहन भी आ जाती है मगर चंदू है की काम पे जाने के बाहर आता है। उसके दोनों भाई उसको पकड़कर भीतर लाकर बोलते हैं की आज तो रूकना ही पड़ेगा ? आज बंटवारा कर ही लेते हैं । ओर वकील भी कहता है सबको साईन करना पड़ता है।
चंदू – ठीक है तुम लोग बंटवारा करो मेरे हिस्से मे जो समझ पडे दे देना। मैं शाम को आकर अपना बड़ा सा अगूंठा चिपका दूंगा पेपर पर।
बहन- अरे बेवकूफ …तू गंवार का गंवार ही रहेगा।
तेरी किस्मत अच्छी है की तुम्हे इतने अच्छे भाई मिलें हैं।
मां- अरे चंदू आज रूक जा।
बंटवारे में कुल बीस वीघा जमीन मे दोनों भाई दस दस वीघा जमीन रख लेते हैं ।
और चंदू को पुस्तैनी पुराना घर छोड़ देते है ।
तभी चंदू जोर से चिल्लाता है।
अरे???? फिर हमारी छुटकी का हिस्सा कौन सा है?
दोनों भाई हंसकर बोलते हैं
अरे मूर्ख…बंटवारा भाईयो मे होता है और बहनों के हिस्से मे सिर्फ उसका मायका ही होता है।
चंदू – ओह… शायद पढ़ा लिखा न होना भी मूर्खता ही है।
ठीक है आप दोनों ऐसा करो-
मेरे हिस्से की वसीएत मेरी बहन छुटकी के नाम कर दो।
दोनों भाई चकीत होकर बोलते हैं ।
और तू?
चंदू मां की और देखकर मुस्कुरा के बोलता है
मेरे हिस्से में माँ है न……
फिर अपनी पत्नी की ओर देखकर बोलता है..मुस्कुराते हुए सुनो ….क्या मैंने गलत कहा?
नहीं जी, अपनी सास से लिपटकर कहती है इससे बड़ी दौलत क्या होगी मेरे लिए की मुझे माँ जैसी सासु मिली
बस ये ही शब्द थे जो बँटवारे को सन्नाटे मे बदल गये ।
बहन दौड़कर अपने गंवार भैया से गले लगकर रोते हुए कहती है की..मांफ कर दो भैया मुझे क्योंकि मैं समझ न सकी आपको।
चंदू – इस घर मे तेरा भी उतना ही अधिकार है जीतना हम सभी का।
मेरे लिए तुम सब बहुत अजीज हो चाहे पास रहो या दूर।
माँ का चुनाव इसलिए किया ताकी तुम सब हमेशा मुझे याद आओ।
क्योंकि ये वही कोख है जंहा हमने वारी वारी 9 – 9 महीने गुजारे। मां के साथ साथ तुम्हारी यादों को भी मैं रख रहा हूँ।
दोनों भाई दौड़कर मझले से गले मिलकर रोते रोते कहते हैं
आज तो तू सचमुच का बाबूजी लग रहा है। सबकी आखोँ में आंसू