संस्कारों की रिक्तता
संस्कारों की रिक्तता
संस्कारों की रिक्तता ने रिश्तों को शून्य कर दिया है
सुकून, सम्मान, मर्यादा सब कुछ कहीं खो गया है
माता-पिता की सेवा बच्चों का आदर सब कुछ भूल गए हैं हम
रिश्तों में अहंकार और स्वार्थ का वास
परिजनों के लिए अब कोई वक्त नहीं है
रिश्ते बन गए हैं सिर्फ नाम के लिए
बच्चे माता-पिता का आदर नहीं करते
माता-पिता बच्चों का पालन-पोषण नहीं करते
पति-पत्नी में विश्वास और प्रेम नहीं है
रिश्ते बन गए हैं सिर्फ दिखावे के लिए
संस्कारों की रिक्तता ने समाज को खोखला कर दिया है
आओ, हम सब मिलकर संस्कारों को फिर से जगाएं
और अपने रिश्तों को पुनः मजबूत बनाएं