#संसार की उपलब्धि
#नमन मंच
#दिनांक १६/०९/२०२४
#विषय उपलब्धियां
#शीर्षक जीत का सफर
#सारांश आनंद धाम
#विधा लेख
सभी सम्माननीय बुजुर्गों व गुरुजनों से मिले हुए ज्ञान से संबंधित !
यह लेख किसी प्रतियोगिता का हिस्सा नहीं है !
🙏राधे राधे भाई बानो🙏
हर रोज की तरह आज फिर एक नए विषय को लेकर उस पर चिंतन करते हैं,आज का विषय बड़ा गंभीर विषय है जिसका नाम है “दुख और तकलीफ”
जो की आत्मज्ञान और स्वयं की पहचान के विषय पर संबंधित है !
दुख और तकलीफों को बुरा मत समझो भाई दुख और तकलीफों से ही प्रभु का मार्ग निकलता है,
इंसान के जीवन में जब तक उपलब्धियां आती जाएगी, तब तक वह आत्मचिंतन के बारे में कभी सोच भी नहीं पायेगा, लेकिन जब वह संसार से निराश होगा तब वह आत्म चिंतन के विषय में सोच पाएगा !
सफल व्यक्तियों के मुंह से अक्षर में सुनता हूं
यह सफलता मैंने अपनी कड़ी मेहनत और
काबिलियत से हासिल की है, इसमें कोई शक नहीं कि सफलता कड़ी मेहनत से मिलती है, इसका यह कतई मतलब नहीं कि उस असफल व्यक्ति ने मेहनत नहीं की होगी !
सफलता का कोई अंत भी नहीं होता जितनी सफलता की सीढ़ी आप चढ़ते जाओगे उससे और आगे के रास्ते खुलते जाएंगे, लेकिन कहीं पर भी ठहराव नहीं अंत नहीं !
सफलता शब्द एक है,
और इसको चाहने वाले हजार हैं जो इसको जितना चाहता है, यह उतनी ही उसके करीब जाती है, गहरे लगाव के कारण यह तुमसे चिपकी हुई है !
इसके उलट संत महात्मा ऋषि मुनि और जितने भी पीर पैगंबर हुए हैं, उन्होंने अपने पास जो कुछ था सब कुछ लुटा दिया फिर जाकर प्रभु की ओर मुड़ पाये !
इसका मतलब यह हुआ कि संसार की सफलता और उपलब्धियों से उनका मोह भंग हो चुका था !
इस सफलता से भी ऊपर कोई चीज है, जिसे प्राप्त करना उन लोगों ने अपना उद्देश्य बना लिया !
आओ इसको कुछ उदाहरणों से समझने की कोशिश करते हैं !
पंद्रहवीं शताब्दी मे एक संत हुए जिनका नाम था ‘नरसी भगत’ वह कृष्ण भक्त थे !
कहते हैं भक्ति में इतना रम गए उनके पास अपने पूर्वजों की चौदह करोड़ की संपत्ति को एक वर्ष के भीतर भक्तों और संतों पर लुटा दी, या यूं कहे कि दान कर दी, और उनकी एक ही लड़की थी नानीबाई जिसका ब्याह बड़े धूमधाम से कर दिया !
आज के समय के अनुसार उस संपत्ति की गणना की जाए तो अरबों रुपए होती है, उस धन को उसकी आने वाली सात पुश्तें भी खर्च नहीं कर पाती, लेकिन नरसी जी ने उस धन को एक साल के भीतर जन कल्याण व धार्मिक अनुष्ठान मैं खर्च कर दिया, और स्वयं भिक्षा मांग कर जीवन यापन करते हुए अपनी कृष्ण भक्ति में मगन रहने लगे,
सांसारिक और भौतिक सुख साधनों में उसकी
कोई रुचि नहीं थी संसार की दी हुई सफलता
और ऐश्वर्या से उनका मोह भंग हो चुका था !
उनको एक बात समझ में आ गई थी, यह संसार की दी हुई सफलता स्वयं की पहचान करने के लिए सबसे बड़ी बाधा है, या यूं कहे आत्मज्ञान के विषय में सांसारिक सफलता सबसे बड़ी बाधा है !
वापस चलते हैं नरसी जी के विषय पर कहते हैं जब भक्तों पर विपदा आती है तो भगवान स्वयं उसके लिए उस विपदा को हल करते हैं,
परिस्थितियों ने करवट बदली और उनकी बेटी नानीबाई ने अपनी लड़की के ब्याह में पिताजी को न्योता भेजा, नानी बाई अपने पिताजी की हालत को जानती थी, अतः पंडितजी को यह कहलवा के भेजा कि अगर आपके पास मायरा भरने के लिए
रुपया पैसा हो तो आना, वरना पिताजी आप यहां अपनी बेइज्जती करवाने मत आना, नानीबाई अपने ससुराल वालों को जानती थी वह सब धन के लोभी है !
दुनिया की हर बेटी अपने पिता व पीहर पक्ष की बेज्जती सहन नहीं कर सकती, उधर जैसे ही निमंत्रण पत्रिका नरसी जी को मिली, वो एकदम बावले हो गए जैसे, बेटी के यहां जाने की खुशी में नाचने लगे !
अपने जैसे साधारण इंसान के अगर इस तरह का निमंत्रण आए तो सबसे पहले तो यह चिंता सताती है हम वहां क्या लेकर जाएंगे, बेटी के ससुराल वालों की हैसियत के अनुसार साजो सामान इकट्ठा करने की चिंता सताती है, लेकिन नरसी जी इस चिंता से बेफिक्र है उनको अपने सांवरिया पर पूर्ण भरोसा है !
उन्होंने अपने प्रभु को याद किया और अपने सांवरिया के भरोसे अपने कुछ अंधे और लंगड़े
संतो को लेकर बेटी के ससुराल पहुंच गए, सिर्फ इस भरोसे की मेरा सांवरिया मेरी लाज रखेगा और मायरा भरेगा, कहते हैं जब बेटी के ससुराल गए तो उनकी खूब बेइज्जती हुई, अगर शायद ऐसी जिल्लत आज अपने साथ हो जाए तो हम सहन नहीं कर सकते !
और अंत में इतना बेइज्जत होने के बाद प्रभु को आखिर आना ही पड़ा, और कहते हैं बड़े ठाठ से नानी बाई का मायरा भरा, यह सब मुमकिन हो पाया इंसान की दृढ़ इच्छाशक्ति और प्रभु पर विश्वास के बलबूते पर !
” सारांश ”
इससे यह सिद्ध होता है कि दुख और तकलीफ बेज्जती को धैर्य के साथ सहन करने वाला इंसान परमपिता परमेश्वर को हासिल कर सकता है !
संसार की सफलता और ऐश्वर्या से भी ऊपर कोई मुकाम है, जिसे पाने के लिए संसार से हारना पड़ता है !
लेकिन जो सफलता की सीढ़ी चढ़ता ही जाएगा,
जिसने कभी असफलता का स्वाद चखा ही नहीं,
वह अहंकार में चूर रहता है उसको संसार की सफलता से बढ़कर दूसरा मार्ग दिखता ही नहीं है !
उस अलौकिक आनंदधाम को प्राप्त करने के लिए
अहंकार के रथ से नीचे उतरकर सांसारिक सफलता की कमान को छोड़ना पड़ता है !
इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि संसार की उपलब्धियां और सफलता हमें क्षणिक सुख देती है, परम सुख परम आनंद हमें इस परमानंद के रास्ते पर ही मिल सकता है, और इस परमानंद के रास्ते पर चलने के लिए संसार से उलटी दिशा में चलना होगा !
आज के लिए बस इतना ही आगे फिर कभी किसी नए विषय को लेकर चर्चा करेंगे !
इस विश्लेषण में कुछ कमी रह गई हो या किसी की भावना आहत हुई हो तो मुझे छोटा भाई समझ कर क्षमा कर देना !
“राम राम जी”
स्वविवेक स्वरचित मौलिक रचना
राधेश्याम खटीक
भीलवाड़ा (राजस्थान)
shyamkhatik363@gmail.com