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29 Jun 2022 · 1 min read

संसारस्य संबंधे आनन्द: दुःख करोति

संसारः प्रतिक्षणं अभावे गच्छन् अस्ति।एतस्मिन् आकर्षणस्य नाम: एव बन्धनं।यथा ‘व्यापारी’इति वस्तु क्रय विक्रय वा करोतु तु एतस्य दृष्टि: धने एव भवति।एतादृशः एव साधकस्य दृष्टि:अविनाशी तत्वे एव स्थिर: भवति।ये ‘है’इतिं पश्यन्ति।ते साधकाः।ये ‘नहीं’इति पश्यन्ति।ते संसारी जना:।सत्संगस्य प्रयोजनं- ‘नहीं’इत्यस्य प्रति दृष्टि दूरी कृत्वा,’हैं’इत्यस्य प्रति आनयितुं।
संसारस्य संबंधे आनन्द: दुःख करोति।नाशवतः प्रियता कर्ता निश्चितं रोदनं करिष्यति।

©®अभिषेक: पाराशरः

Language: Sanskrit
136 Views
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